पाबूजी अवतार लियौ जद,हरख छायग्यौ धरतड़ली।

मारवाड़ राठौड़ा भाई, धरमा राखी साखड़ली॥

धांधल अपसरा ब्यांव राच्यौ,मनरी करता बातड़ली।

पाबू जिसड़ौ पूत जलमियौ,मरूधरा री धरतड़ली॥

लक्ष्मण रा अवतार पाबूजी, मारवाड़ मै बातड़ली।

सिंघणी सूती दूधौ पावै धांधल देखी आंखड़ली॥

धांधल मौत हुयां सूं भाई, बाप दिखै नीं मावड़ली।

साव अकलौ पाबू रहग्यौ, धाय संभाळै साथड़ली॥

जींदराव जद घोड़ी मांगै, नटजा देवल साथड़ली।

घोड़ी म्हारै जीव जड़ी है,घर री राखै लाजड़ली॥

स्रोत
  • पोथी : मूंडै बोले रेतड़ली ,
  • सिरजक : सरदारअली परिहार ,
  • प्रकाशक : परिहार प्रकाशन ,
  • संस्करण : प्रथम