चीखल माथै चढ्यौ महंदरौ, पूगै मेड़ी मूमलड़ी।

ढळती रातां मूमल सूंपै, तोड़ काळजौ कोरड़ली॥

ऊंट बिनां मरुधरा अडोळी, सूनी दीसै टीबड़ली।

करलै बिन मरवण नीं पूगै, ढोला थारी नरबड़ली॥

काबुल सूं जोधाणै पूग्या, जसवंत चढिया सांढड़ली।

अमरकोट हूमायू पूग्यौ, बेगम साथै टोडडली॥

हमिदा तुरियौ जीव छोड़दयौ, थळी देस री टीबड़ली।

ऊंटी तांणां अकबर जलम्यौ, अमर कोट री धरतड़ली॥

पांगळ धोरा चढतौ भाजै, लांघ समंदर रेतड़ली।

जळ कोथळकी केवट टुरियौ, चालै दिन अर रातड़ली॥

स्रोत
  • पोथी : मूंडै बोले रेतड़ली ,
  • सिरजक : सरदारअली परिहार ,
  • प्रकाशक : परिहार प्रकाशन ,
  • संस्करण : प्रथम