धरम धरम सब एक है, पण वरताव अनेक।

ईश जाणणो धरम है, जींरो पंथ विवेक॥

पर घर पग नी मेळणों, वना मान मनवार।

अंजन आवै देख’नै, सिंगल रो सतकार॥

वणी सूत री सींदरी, वणी सूत री पाग।

वंधवा वंधवा में फरक,जश्यौ जणी रो भाग॥

उपजै आपो आप ही, भाग प्रमाणै लाग।

कोइक पीटै ताळियां, कोइक खेचैं खाग॥

मलै मोकळा मनख पण, मलै मनखाचार।

फोगट फोनोग्राफ ज्यूं, वातां रो बे’वार॥

फेर फेर में है, जीनै जश्यौ जणाय।

नळ में तो जळ मोकळो, फेर फेरवा मांय॥

एक द्वात रै मांयनै, भांत भांत री वात।

जश्यौ जणीरो व्है हियो, वशी निकाळै हात॥

रेंठ फरै चरक्यो फरै, पण परवा में फेर।

वो तो वाड़ हरयौ करै, यो छूंता रो ढेर॥

वी भटका भोगै नहीं, ठीक समझलै ठौर।

पग मेल्यां पेलां करै, गेला ऊपर गौर॥

चौपड़ घर चोपट करै, रंज करै शतरंज।

ताछ चुकावै ताछ नै, सब रावण रा रंज॥

दो वातां नै भूल मत, दारू पीती दाण।

पे’ली तो जग में हंसी, दूजी घर में हाण॥

वाल्हा वचै विरोध जी, करै फुँकरयां चाड।

वाशूं तो भाटा भला, रूप’नै मेटै राड़॥

स्रोत
  • पोथी : चतुर चिंतामणि ,
  • सिरजक : चतुर सिंह ,
  • संपादक : मोतीलाल मेनारिया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रन्थागार, जोधपुर ,
  • संस्करण : तृतीय