गोपनार चितहरण, प्रेम लच्छणा समप्पण।

कुंजबिहारी क्रस्ण, रास ब्रंदाबन रच्चण॥

गोवरधन ऊधरण, ग्राह मारण गज-तारण।

जुरासिंध सिसपाळ, भिड़े भूभार उतारण॥

जमलोक दरस्सण परहरण, भौ भग्गौ जीवण-मरण।

मंत्र भलो निस दिन अलू, सिमर नाथ असरण-सरण॥

महाराज गजराज ग्राह, उग्रह्यौ सनेही।

करि आण्यो वयकुंठि दिव्य नारायण देही॥

दधि भारथ कौरवा, अतर वेला उत्तारे।

रौद्र दुजोवण सभा, लाज द्रोपदी वधारे॥

सुदरसणा ससंख गद्दा पदम, अंबर पीत चियारि भुव।

गोविंद वेग बाहर गरुड़, हरि जगनाथ पुकार हुव॥

ब्रह्म वेद उच्चरैय, गीत तुंबरू गावै।

रंभा अवसर रमै, वीण सरसत्ती बजावै॥

सिव अवलोकण करै, इंद्र सिर चम्मर ढाळै।

व्यास उकति बरनवै, पांव गंगा पख्खाळै॥

ससि सोळह कळा अम्रित स्रवै, सूरिज कोटि समंधरै।

अपरम्म तणां सिर ऊपरै, कमला आरत्ती करै॥

मोर मेर पर चूगै, चुगै पंछी फळ तरवर।

गज कजळीवन चुगै, चुगै डिग हंस सरव्वर॥

अनड़ चुगै आकास, चुगै पाताळ भुयंगम।

केहर वन में चुगै, चुगै नित ठाण तुरंगम॥

जीव जंतु सब ही चुगै, गांठै कहां गरत्थ है।

चिंता मत कर ना-चिंत रह, देणहार समरत्थ है॥

स्रोत
  • पोथी : प्राचीन राजस्थानी काव्य ,
  • सिरजक : अलूनाथ कविया ,
  • संपादक : मनोहर शर्मा ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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