जुरा मरन भयकाल, साहि संगिही चालि आये।
हठ करि की नर गये, कोड थिर रहन न पाये।
मुनि नारद नाचै जहां, गावत वैंन वजाय।
तजि अभिमान अलावदी, लगो सुरन कै पाय॥
तज्या साहि अभिमान, ग्यान गुर अंतर लाये।
सव देवन कुं साहि, जोड़ि करि सीस नवाये।
अजमति देखि अलावदी, रहे साहि सिर नाय।
अव तुम्हारे भवन दिसि, कबहुं न चितवै आय॥
अव देव दोख तजि साहि, करो कोऊ दिन पतसाही।
हिमत वाहादर अलीखान, ऊभै लख हसम खिसाई।
सुर तेतीस साहायकुं, अजमति दई दिखाय।
कह हमीर वहुर्यौ अवै, हम तुम जंग पतसाहि॥
ह् वै थोड़ी सूं बहुत, मुलक पावक परजारै।
विना दोख पतसाहि, कौन किस ही कु मारै।
तन विनसै कीरति रहै, इह कोउ जानत साहि।
आई अवधि अलावदी, सो क्यूं मेटी जाय॥
करि देवन सूं दोख, साहि कौनें सुख पाये।
जालंधर दसकंधउ, से नर गरद मिलाये।
कह हमीर पतसाहि सूं, सुनि असुरन के ईस।
हजरति कौं ज विसारीये, हम रिख ऊर तुम सीस॥