कुड़की गांवां जलमी मीरां, मेड़तियै री धरतड़ली।

प्रेम-गोपिका आय बिराजी, मरूधरा री टीबड़ली॥

ऊंचे टीलै गाय आयजा, दूधां चालै धारड़ली।

चारभुजा री मूरत निकळी, खोदयां धरती माटड़ली॥

विसरौ प्यालौ मीरां पीगी, हस हस करती बातड़ली।

भगवन री किरपा रै तांणा, सांप बणै है हारड़ली॥

मीरां बाई भजन गावती, टुरंगी धोरा धरतड़ली।

मेड़तियै मै आय बिराजी, छोड़ सासरी साथड़ली॥

हाथ तंदूरौ दिखै बाजतौ, मुंडे मधरी गीतड़ली।

भजन बाणी सूं गांव गूंज्या, हरख छायग्यौ टीबड़ली॥

स्रोत
  • पोथी : मूंडै बोले रेतड़ली ,
  • सिरजक : सरदारअली परिहार ,
  • प्रकाशक : परिहार प्रकाशन ,
  • संस्करण : प्रथम