कायर ऊठ संघर्ष कर, तन देवण नह तंत।

पतझड़ रे झड़ियों पछै, बिगसे फैरू बसंत॥

अंधकार आतप हुवै, मघवा बरसे मेह।

ऊंडी सोच विचार उर, दुरलभ मानव देह॥

लाख जनम तन लांघियों, पुनि मानव तन पात।

बिरथा देह बिगाडने, मत कर आतम घात॥

सुख दुखः इण संसार में, हे विधना रे हाथ।

दुरदिन सनमुख देखने, मत कर आतम घात॥

सदा नही संकट समय, सदा नही बरसात।

काल रहे नही थिर कदे, मत कर आतम घात॥

सरमें पीहर सासरो, लाजे परिजन लोक।

दाग मिटे नही दाग सूं, सब जीवन भर शोक॥

परमेसर पूरण प्रभू, उणरे घर इंसाफ।

कूच करे बिन कायदे, (तो) मालिक करे माफ॥

सुख सुविधा साधन सभी, हसी खुशी से होत।

घर आवे दुविधा घणी, मरे जिका बिन मोत॥

दिलमें राख दैशाणपत, मन रट करणी मात।

भली करे सब भगवती, बण जावे सब बात॥

तीन लोक तारण तरण, नमो त्रिलोकी नाथ।

आयो कष्ट उबारले, मत कर आतम घात॥

काबू रखणो क्रोध ने, मन रखणो मजबूत।

नैड़ा कर नह नीसरै, जिण पासे जमदूत॥

मरे जिका बिन मोत सूं, जीव नरक में जाय।

पोट उठावै पापरा, देव करे नह दाय॥

खाणा, पीणा खरचणा, अपणी निज औकात।

पछताणों फिर ना पड़े, मत कर आतम घात॥

मोहन हे सुण मानवी, बड़े ज्ञान री बात।

रखे भरोसो राम रो, मत कर आतम घात॥

स्रोत
  • सिरजक : मोहन सिंह रतनू ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी