मारू देस उपन्निया, तिहाँ का दंत सुसेत।

कूझ बची गोरंगियाँ, खंजर जेहा नेत॥

मारू देस उपन्नियाँ, सर ज्यउँ पध्धरियाह।

कड़वा कदे बोलही, मीठा बोलणियाह॥

देश निवाणूं, सजळ जळ, मीठा बोला लोइ।

मारू काँमिणि दिखणि धर, हरि दीयइ तउ होइ॥

देस सुरंगउ भुइं निजळ, दियाँ दोस थळाँह।

घरि घरि चंद वदन्नियाँ, नीर चढ़इ कमळाँह॥

स्रोत
  • पोथी : ढोला मारू रा दूहा ,
  • सिरजक : कवि कल्लोल ,
  • संपादक : रामसिंह, सूर्यकरण पारीक, नरोत्तमदास स्वामी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर
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