चांदड़ले री रात चांदणी, तारां छायी रातड़ली।

धोरलियां रा गांव भलेरा, रळ-मिळ बैठै साथड़ली॥

रग-रग मै माटी कण बसियौ, हिवड़ै माता धरतड़ली।

बीकाणै गांवां मै बसगी, मरूधरा री साथड़ली॥

मरूधरा रौ माथौ ऊंचौ दिल्ली पूगी बातड़ली।

नागाणौ पूठौ नीं देख्यौ, रांणी हाडी साथड़ली॥

मरूधरा सूरां री धरती, जलमै जोधा मावड़ली।

धरती मा री लाज राखदी, कहती दीसै साथड़ली॥

सूर तणा ही सदा रही है, इण धरती री लाजड़ली।

जौधाणै री धरती माथै, हेला देवै साथड़ली॥

स्रोत
  • पोथी : मूंडै बोले रेतड़ली ,
  • सिरजक : सरदारअली परिहार ,
  • प्रकाशक : परिहार प्रकाशन ,
  • संस्करण : प्रथम