मारू देस उपन्निया, तिहाँ का दंत सुसेत।
कूझ बची गोरंगियाँ, खंजर जेहा नेत॥
मारू देस उपन्नियाँ, सर ज्यउँ पध्धरियाह।
कड़वा कदे न बोलही, मीठा बोलणियाह॥
देश निवाणूं, सजळ जळ, मीठा बोला लोइ।
मारू काँमिणि दिखणि धर, हरि दीयइ तउ होइ॥
देस सुरंगउ भुइं निजळ, न दियाँ दोस थळाँह।
घरि घरि चंद वदन्नियाँ, नीर चढ़इ कमळाँह॥