बीकै कुळ रा भाण असमै आथविया कियां

बिलखै धर बीकाण थां बिन गंग महीप अब

कीरत समदां पार गाईजै जिण री अटळ

भूपति गंग उदार दिल किण विध काठो कियो

इळ पर भूप अनेक दीपंता दीसै प्रगट

रख राठोड़ी टेक इसड़ो जस पायो किसै

राख्यो बिड़द विचार रजपूती राखी अचळ

गासी जस संसार कुळव्रत राखण गंग नूप

थांरो रूड़ो रूप एकर जिण देख्यो निजर

सो किम भूलै भूप बो राठोड़ी तेज तप।

स्रोत
  • पोथी : बाळसाद ,
  • सिरजक : चन्द्रसिंह ,
  • प्रकाशक : चांद जळेरी प्रकासन, जयपुर
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