सुमत समापो सारदा, आपो उकती आप।

कमधां जस वरणन करूं, तूझ महर परताप॥

समरूं गणपत सरसती, पांण जोड़ लग पाय।

गाऊं हूं सळखाणियां, विध-विध सुजस बणाय॥

स्रोत
  • पोथी : वीरवांण ,
  • सिरजक : बादर ढाढी ,
  • संपादक : लक्ष्मीकुमारी चूंडावत ,
  • प्रकाशक : राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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