कोडमदै कोडां सूं चाली, छोड घरां री गांवड़ली।

सादुलसिंघ डोळै रै साथै, हाथां थाम्या बीजड़ली॥

अरड़कसिंघ अरड़ातौ आवै, रोकी बीचां डांडड़ली।

सादुलसिंघ री भुजा फड़ू की, खांडै पळकी धारड़ली॥

हूंकारां सूं धरती धूजै, लड़े सूरमा धाकड़ली।

अलटा-पलटा खाता दीसै, ऊपर पड़ियां धरतड़ली॥

खांडै झपटा लाय पलीता, दिखै फाटती चामड़ली।

खून तुतकिया दिखै छूटता, लाल हुई है धरतड़ली॥

ठौड़-ठौड़ पर घाव दिखै है, चाटै सूत्या रेतड़ली।

सादुल वीर दो-टूक होयौ, बरड़क लीनी मौतड़ली॥

स्रोत
  • पोथी : मूंडै बोले रेतड़ली ,
  • सिरजक : सरदारअली परिहार ,
  • प्रकाशक : परिहार प्रकाशन ,
  • संस्करण : प्रथम