चोपई

राजा रमलि करंतु रहइ, इम केताइक दिन निरवहइ।

सगला लोक वसइं सुखवास, आवासे लागा आवास॥

तिणि पुरि राघवचेतन व्यास, विद्यासुं अधिकु अभ्यास।

राजा तिणि रीझवीउं घणुं, मुहत घणु द्यइ व्यासां तणुं॥

राय भवणि नितु प्रति संचरइ, भारत वात वखाणइं करइ।

अमहलि महलि सदा संचरइ, राजलोक महि हींडइ फिरइ॥

एक दिवस पदमिणि नइ पासि, राजा बेठउ करइ विलास।

नेह नितंबनि चुंबन करइ, राजा आलिंगन आचरइ॥

तिणि प्रस्तावइं राघव व्यास, पुहतु पदमिणि तणइ अवासि।

ते देखी राजा खुणसीउ, राघव ऊपरि कोप कीउ॥

भमह चडावी कीउ त्रिसूल, कोप तणु जे कहीज मूल।

राघव पिण मन माहे डरिउ, विण प्रस्तावइं हुं सचरिउ॥

चतुर तणी नहीं चातुरी, अणतेडिउ आवइ फिरि फिरी।

वात गोठि अणरुचती करइ, काढंतां नवि नीसरइ॥

बिहुं जणां विचि त्रिजु थाइ, अमहल माहे आघु जाइ।

अणबोलायु बोलइ घणुं, अणदीधुं वलि ल्यइ बेसणुं॥

डीलइं डील लिगाड़ी घसइ, वात करंतु आपे हसइ।

मनि जांणइ हुं खरू सुजाण, मूरिख जन रा अहिनांण॥

एकंतइं अस्त्री भरतार, रामति रमतां हुइं अपार।

कन्हइं जई ऊपाइ काणि, मूरिख जन रा अहिनांण॥

इम मनि खुणसिउ राजा घणुं, मान मरोड्युं व्यासां तणुं।

कीधी रीस घणी ते राइ, जिणथी तन धन जीवित जाइ॥

विलखु हुइ ऊतरीउ व्यास, नीठ पहूतु निज आवासि।

सांमि तणी जब थाइ रीस, तव जांणे रूठउ जगदीस॥

वलतां व्यास तेड़्या माहि, मांन मुहतथी मुंक्या ठाहि।

इणि मुझ दीठी पदमिणी, आंखि हरावुं हुं तणी॥

व्यास सुणी इम मनि बीहनु, कुण वेसास करइ सींहनु।

राजा मित्र कदी नवि होइ, नवि दीठउ नवि सुणीउ कोइ॥

इम चिंती राघव मनि डरइ, नृप खुणसांणइ खिण विसरइ।

नृपनी खुणसि होइ भली, नितु नितु हाणि हुइ एकली॥

स्रोत
  • पोथी : गोरा बादल पदमिणी चउपई ,
  • सिरजक : हेमरतन सूरि ,
  • संपादक : मुनि जिनविजय ,
  • प्रकाशक : राजस्थान राज्य प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर (राज.) ,
  • संस्करण : तृतीय
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