खोटा रूपया खावतो, जावे सीधो जेल।

मिल जाये रज माजनो वंश होय बिगड़ेल॥

खोटा रूपया खावतो, लगे एसीबी लार।

निश्चय जावे नौकरी, बिगड़ जाय घरबार॥

खोटा रूपया खावतो, चित्त में पड़े चैन।

रात दिवस चिन्ता रहे, नींद आवे नैन॥

खोटा रूपया खावतो, खून ऊपजे खार।

घर कुसंप झगडो हुवे, पूत जाय परवार॥

नेकी सू कर नौकरी, बहणो उत्तम बाट।

नर निरलोभी निडर रे, काया लगे काट॥

करणा नह हीणा करम, पद परमोशन पाय।

घर रोशन होसी जदे खरी कमाई खाय॥

मद पीवे मुजरा सुणे, जार जुआंघर जाय।

करमत खोटा कामड़ा, खोटा रूपया खाय॥

झोटो ज्यू लेवे झपट, कपटी नोट कमाय।

पग ज्यांरां बारे पड़े, खोटा रूपया खाय॥

परणेतर ने परहरे, परदारा सू प्रीत।

रूठ जावे सारी रकम, रिसवत री रीत॥

खरी कमाई खावणी, रहणो एक रूझाण।

खरी बात केवे खरी, रतनू 'मोहन' राण॥

खोटा रूपया खावतो, जीव नरक में जाय।

कहे 'मोहन' सुन कार्मिक, खरी कमाई खाय॥

स्रोत
  • सिरजक : मोहन सिंह रतनू ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी