छप्पय

मल्हण कै कविचंद, चंद कुल साह लड़ानौ,
हरखवंत हरसिद्धि तिन्हैं वरदांन प्रमांनौ।
तवतैं वरवये वपु चंद सुत जल्ह्न जप्पिय,
जल्हन के वलदेव जकै वलखंड सुथप्पिय।
नरदेव नांम तिनकै भये भीम जिय जानियै,
पुनि मांनदेव गंगेव जी भीषम देव वखांनियै॥

चौपाई

भीषम कै दुरगादत जानौं, तिनकै दूलैराव वखांनौ।
दूलै घर नाथो कविराज, दांन मांन श्रुति सकल समाज॥


दोहा

नाथा कै गिरधर कह्यौ, तिनकैं छीतरसाय।
तापद प्रेम प्रतानियौ, गुनि गुमान कविराय॥

सालम मालि (....य) न घरां, तिनकै भोज वखांन।
वा घर भैंरूसिंह कै, शंकर (सुकवि) सजान॥

स्रोत
  • पोथी : भीम विलास ,
  • सिरजक : शंकर राव ,
  • संपादक : महावीर प्रसाद शर्मा ,
  • प्रकाशक : लोकभाषा प्रकाशन, कोटपूतली,जयपुर।
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