मिनखां बिगड़्या म्हेंदरा थिगै जिनावार थाट।
पंछी अडै अबै-दरा, बंजड़ बारा वाट॥1॥
दिन दोरा अूमस-भर्या काटां दुखड़ा देख।
'गिणतां घिसी आसाढ-नै आंगळियां-री रेख'॥2॥
कीकर-कैरां, कूमटां जड़-झाखड़, झुंडझांस।
वन बंजड़, बीहड़ बळ्या फोगी, फोग, फरांस॥3॥
मुरधर मंगळ रूप, जठै जंगळ भळ भारी
दंगळ धोरा, डैर, मैर मुरड़ा मझधारी
दाझ्या भोमी-भाग अखड़ भांती-रा सारा
धोरा, डहरी, ताल, पाळ, परबत बेचारा
भुरट, मुरट, धामण धरा ना, धूंधां धोरा घास है।
खींपां, पींपां फोगड़ा में ठूंठां थोथा ठांस है॥ 4॥
वूठ कळायण ! मुर-धरा पूरण आखी आस।
तो तूठ्यां रूड़ी रुतां, मौजां बारां मास॥5॥
होसी जेठू बाजरी, वासी मोभी पूत।
खासी दुनिया दूर-री, करे कळायण कूंत॥6॥
भोम मोम ज्यू गळ रयी, अुमस-ओग अथोग।
ग्रीखम भावण रातड्यां दिवसां दाझै लोग॥7॥
चेतो कर चित मांय हरख-सूं आव हठीली!
बिरंगी सी बणराय बणावत रंग-रंगीली
छेकै हाली आव छबीली! देती ठेका
मोरां मन हुळसाय मगेजण! सुणज्या केका
घुरा नगारा गैरी घुळज्या अुमस अुनाळो मारणै।
जोड़ा झोळ झिलोळ भरणै आव कळायण! तारणै॥8॥
जेठ महीनै जोर-री चंचळ लू चाली।
नीर लुकायो लोयणां, ज्यूं ठीकर ठाली॥9॥
आंख्यां आडो काच सो, सूक्या आंसूड़ा।
बैठा झीणी झाड़ख्यां तिस मरता मिरगा॥10॥
बिरखां विलखा सूवटा, मोर कूवटां केळ।
गायां छायां- छानड्यां, खोल्यां अभी खेळ॥11॥
हर् या रवै ना रूंख, सूकग्या सगळा सारा
हरी तुसर ना मिलै ओखदां-तणी तिवारां
बाळक रोवै गोद डसाडस अुमस-झाळां
मात पळूसै माथ, पसेवो चाल्यो खाळां
मूवा सा बाळक हुवा है लाय लुवां- री ताप तळ।
मांचां पर बूढा-बडेरा सिसकै तपती बीच बळ॥12॥
अुमस-ओग तन माणसां फुणसी-फोड़ा होय।
अधड़ अळायां चमचमै, खाज खुसी-री खोय॥13॥
टाबरिया भाज्या बगै झलती ताती लाय।
बळता पांव घसोड़ता पोटां-में चिरळाय॥14॥
छांयां आयां छोकरा पग ठंडा कर लेय।
अिसड़ी ताती धूड़-नै टाबर निकळै खेय॥15॥
घास नहीं भर-पेट, भेडड्यां लौटै भूखी
झट कोठा लै सोख, खेळियां कर दै सूखी
सांडां टोडां टोळ टुळककर कूवै आया
नीर मिलै तो मिलै, नहीं तो रवै तिसाया
गंडकड़ा गळियां फिरै है तिसिया ताप्या तावड़े।
अै मौजां अुण दिन करैला, जिण दिन वरसा बावड़े॥16॥
झूरै जाझा जीवड़ा मुरधर बिन बिरखा।
अुझळ अुनाळै ओग में अुण-मुण अुणियारा॥17॥
आंचळ आंसू पूंछती नारयां निरख रही।
आसी अवस अुडीक पर, सजनी! समझ सही॥18॥
बिन जळ ज्यू होवै कमळ, बिना चांद ज्यूं रात।
सूक्यो सारो सोरखै, मुरधर काळो गात॥19॥
डांगर बांठां जाय, घरां ही रवै घणा है
खोड़ां-में के खाय, तिणकला गिण्या-मिण्या है
खेजड़लां- री छांय भैंसड्यां नाख्यो हांगो
पाणी-रा अै जीव हाल है खोटो आं-गो
हांफतड़ी हूँ-हूँ करै है बण गरीब ज्यूं गावड्यां।
काळी मतवाळी बणैली बहन कळायण बावड्यां॥20॥
आस सदा-री आपरी आसा-पूरण आव।
खड़ा अुडावा कागला जीवण मती गमाव॥21॥
दे दरसण, दोरी धरा, निस-दिन जोवै बाट।
कदे कळायण आवसी, दुखड़ा देसी काट॥22॥
चित-में राखा चावसू खड़ा हुवां खोटी।
ऊँचा देखा रात-दिन नाख रिजक-रोटी॥23॥
सहरां डरिया लोग रोग-रगड़ा-सूं भारी
अुमस-ओग अथाह आय चालै बेमारी
साहूकारां मौज लगी पंखां-रै नीचै
उळझ्या गरमी मांय गरीबां बिखमी बीचै
तड़फां गांवां बीच झीणी छानड़ियां-री छांय-में।
लाय बुझावण आय कळाण! घाल न जूती पांय-में॥24॥
अुमस धधकिया धोरिया, डहर् यां बिगड्यो डोळ।
आय कळायण! भेयज्या करज्या राता-रोळ॥25॥
ताल तप्या है तावड़ा झळ-बळ उझळ्या जोड़।
मऊ गयोड़ा मानवी अब तो पाछा मोड़॥26॥
कस्ट धरा-रो काट दै कर मुरधर पर मै'र।
जुग-मन-भाती जोगणी! ला दे ठंडी लै'र॥27॥
मुरधर मंगळ देस हुवैलो आयां थारै
कर किरपा आसाढ बरस सुख सांझ-सवारै
विणती सुण म्हारी, अबै आ थारी वेळां
सूक्या कूवां कोठ, पड़ी है खाली खेळां
आ बाळी उनाळै बैरी काळी कोझी सी करी।
धुखती धर बुझाणै कारण आव, जगत ऊमस मरी॥28॥
अरे डोकरी! डर मती जाण' र सूको भट्ट।
चटपट हरियो होवसी चंचळ मुरधर चट्ट॥29॥
सगळां जियां- री जड़ी! सदा जियां ही आय।
दाता सिरै कळायणी! धुखी धरण लैराय॥30॥
ढूंढां कर दे फूलड़ा, मूंढां भर दे आभ।
मुड़दां दे सुख मोकळो बूढां जीवण-लाभ॥31॥
तूंही नसावण रोज, मौज मन मंगळ करणी
धरणी धरणी रूप, धूप धर तासो हरणी
तूंही खिलाणी खेत, हेत मुरधर हरियाळी
कागोळ्यां छिटकाय, दाय-सूं हो मतवाळी
तूंही विधना मुरधरा-री, लिछमी खेड़ां-री खरी।
तूंही मारण मा' देव है भांत-भांत व्याधी भरी॥32॥
बेगी आ बड-गोतणी! भोमी भूंडै भेख।
तूं आसी जद काढसी काजळ-टीकी-रेख॥33॥
हरियो रूड़ो धारसी धरती रूप अमोल।
बेस चटपटो पैरसी पेअी-बुगचा खोल॥34॥
कोर-कांगरा पळकसी आभूसण रिमझोळ।
पायल पगड़ा झणकसी खगड़ां करण किलोळ॥35॥
कळप्यो सौ संसार, ग्रीस्म रुत करड़ी भारी
चौमासो चित चेत भूलिजै विपत्यां सारी
काम करै किरसाण दिवस भर खेतां दोरा
गिणै न गरमी-लाय, सांझ घर आवै सोरा
हीव हलोळा हरख- रा है, फूल्यो सौ परवार सब।
अिसै ओसर आव कळायण! बरस'र बाजी मार अब॥36॥
कर किरको गायां टुरै रोही लियां अडीक।
लेय कळायण आवसी लीलो लोहां लीक॥37॥
तिसा मिरग तालां फिरै, भरम मरम ना जाण।
आक वटूकै, लू भखै' डाबर-नैण मलाण॥38॥
जलमां-रा ज्यूं पापड़ा काटण गंगा माय।
त्यूं ही दुख जीवां-तणो काट कळायण! आय॥39॥
लाय बुझावण आय, नाय धर ठंडो पाणी
भोमी भगवीं हुयी, नहीं थारी सैनाणी
ऊभा ठाली ठूंठ, खेजड़ी आवै खाणी
झाणी-झीणो लूंग लियां सिर मांगै पाणी
मुरधर में लगा दे लूंठी पोआं बारा मासड़ी।
खाणै धान निपा दे खेतां, मिटा किसाणां कांसड़ी॥40॥
धीव अळोचै पीव-घर रातादे-री रीझ।
सावण सुरंगी ल्यावसी राग-रंग-री तीज॥41॥
नीमां पर पाकी घणी नीमोळ्यां रस-दार।
सावणियों कद आवसी मांडण हींड मलार॥42॥
सावण लावण तीजड़ी, खावण चावळ-खांड।
बरसावण मे' मोकळो, हींड हिंडावण मांड॥43॥
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गीत
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टोकां-री टोळी सी ल्यासी, सावण वीरो मेह बरसासी।
सावण सुख उपजावण सब रै, मेहा-रो मांझीड़ो आसी।
बणा-तणा आभै पर बादळ गै'री घमघम घोक बजासी।
ताल-ताल पाणी भर देसी, 'कःको कःको' मोर बोलासी॥1॥
पणिहार् यां मिल लूमझूम-सूं लै' रो गाती जो'ड़ै जासी।
छांटां आसी, जी डरपासी, आणंद भरी हांफती आसी।
चढकै चीर सुकासी ऊंचो, इण विध झटपट पाणी ल्यासी॥2॥
सूरज-री ऊगाळी खेतां भातो ले भतवारण जासी।
ऊंटां बळदां सूं हाळीड़ा हळ बांवतड़ा तेजो गासी।
फोग काट फटकारै भावज नणदोल्यां-नै बीज तोपासी॥3॥
हरी-भरी भोमी हो जासी, खेत-खेत बाजर बरणासी।
बेलां ऊंची केलां चढ़सी, काचरिया नीचे किर जासी।
लगा अंगीठी सिटी मोरस्यां, जद म्हांरो जिवड़ो सुख पासी॥4॥
ऊंचे धोरै झुंपा होसी, कोछां-सूं काकड़िया आसी।
मूण-पट्ठा मतीरा मिलसी, खिलसी खेत, हियो हुलरासी।
घर गायां- रो दूध-दही-घी आया-गया बटाऊ खासी॥5॥
सावण वीरै-रै स्वागत में बै' नां खड़ी राखड्यां पोवै।
लगा आंखड्यां कुछ लेवण-नै ऊंची आभै कानी जोवै।
वर देअी तूं सावण वीरा! बारो मास रवै मौजां-सी॥6॥
.........सावण वीरो मेह बरसासी॥44॥
छिणमिण छांटां मेह सुरंगो सावण ल्यासी
करवल भीगी भोम खींचता हळ उरणासी
नणद-भौजायां साथ गीतड़ा मीठा गासी
खिल जासी सै खेत, घणो हिवड़ो हुळसासी
जद सुख पासी जीव म्हारो, खेतां ही नै चावसी।
मेह बधाऊ बेलां-फूलां भरण-भरण मंडरावसी॥45॥
ला आणंद असाढ-रा, बीत्यो मी'नो जेठ।
अरे कळायण! आ अबै, मुरधर सांसो मेट॥46॥
सिंझ्या आंधी ऊमटै आय आळिया गोळ।
करणी जुग करळोपना खोल तुफानी खोळ॥47॥
तीखा तावड़िया तपै, झळ-बळ लूवां जोर।
किरसाणां-रा डीकरा खेत सुधारै खोर॥48॥
सहरी बसत्यां-रा मिनख मौजां माणै खूब
ऊनाळै डर राखता बाग-बगेचा दूब
बाग-बगेचा दूब ऊब घर-सूं आ जावै
कूवां बावड़ियांह न्हाय-धो तेल लगावै
धोळी धोत्यां अंग कमेजां झीणी पहरी।
'गरम! गरम!' तोइ करै कळायण कोडां सहरी॥49॥
घर-घर आही बातड़ी, गयो ज जुलमी जेठ।
आळस-नींद उडायल्यो', पूगो खेतां ठेट॥50॥
खेतां रेतां बळबळी ताती उडै अखंड।
मन-में मधुर मतीरिया, किरसाणां तन ठंड॥51॥
ऊपरलै-री आसड़ी ऊमस गिणै-न लोग।
बूजा काढै हळफळा, फटकारै कर फोग॥52॥
खेजड़लां-री छांय बसतियां बैस हथाई
कासमीर-सी मौज बूढला करै बडाई
आबू सिमलै जिसी छांय मन भाण छबीली
जाणो बाड़ी बणी फूलड़ां भरी फबीली
लूंग लसै खस-टाटियां सो धूड़ ज्यूं ठंडी दूब है।
मुरधर में खेजड़ला देवै छांयां सुख-री खूब है॥ 53॥
थोड़ो जुग-में जीवणो, बुढळां सुखी बणाय।
क्रिपण हुयी क्यूं कोढणी किरपा-करणी माय !॥54॥
चिरमी सा चैरा हुया, गिरमी झळ भरपूर।
लूवां-लाय लुकाय दे, दीनां-सूं कर दूर॥55॥
मुजरो करसी बावड्यां लूवां तैं सूं हार।
जासी तळण विजोगणी घरां नवेली नार॥56॥
धरा खो रही धीर, सीर तूं सोच धिराणी !
गैरी पीड़ पिछाण नाख दे नीर नराणी!
पाणी-पाणी हुयी, मुरधरा वाणी आखी
लाय लुवां रै मांय गळै ज्यूं नगरी लाखी
अ-पत पादपां लख-पत-करणी जुग पर छांयां कर जरा।
मअू गयोड़ा माणसां-नै घेर दिखा दे मुरधरा॥ 57॥
उपराड़ै-कर आवज्या ओळूं मेटण-हार !
मुरधर मन सूं वीनवै तैं-सूं बारंबार॥58॥
अणचींतो दुख अळग कर, मुरधर-दुसमी बाळ।
अिमरत-नीर पिलाय दे, ना सालै भल काळ॥59॥
जूना प्रेम जणावणी! सूनो मत कर देस।
तैस नैस होजावसी तो आयां विन सेस॥60॥
सांढ- टोरड़ा थक्या, बैसग्या गोधा गोरा
बाछां चिमटी जूंव उरणिया अूभा दोरा
नीवड़ती गउ-भैंस गोरवैं जाय बिराजी
गधा गूंजता फिरै, तावड़ै भूंकै राजी
छाळ्यां छोड जमारो हाली, हाडां लीलो अूगसी।
खावणआळा खेतां रैसी, खड़ो अधाणो सूकसी॥61॥
उसण ताप तप अधमर् या प्राणी रया पुकार।
तिसा तळतळ्यां बापड़ा बळता लूंकड़-स्यार॥62॥
स्याह-वरण बसत्यां हुयी, कुमळायीजी कांय।
आठूं पोरां अेक सी, छिणक सलूणी नांय॥ 63॥
खेतां बूजा खोदता विणती करै बणाय।
आभै-रूप-उघाड़णी ! भीड़ भंगावण आय॥64॥
लागी लाय घरांह, कळायण भाज बावळी!
पाणी ढोळ बुझाय, माण मत मौज रावळी
कोड करै ना कोय जाण अपणो घर खोयां
दिल भर दिल-सूं माण करै कुण बिन घर होयां
मुरधर ना कर राख, मानवण! राख सदीना हेतड़ा।
अब धोळे दुपार धिराणी! मती उजाड़े खेतड़ा॥65॥
सूखां रूखां सूवटा अिसड़ा रह्या सुवाय।
जाण कळायण कोड-में रूंख रह्या लैलाय॥66॥
सुख भोगावण आवज्या, थोग अरोगण काळ।
रोग मेटणी रोज-रा जोगण! काटण जाळ॥67॥
नखराती मत नीसरी! नोरा करां निपट्ट।
'नट ना' पांगरसी परो ओ भूरोड़ो भट्ट॥68॥
अुडै धपटवीं धूळ, चूळबंध चालै हूळा
मंडण किसी मजाल मेह, नभ मिलै भगूळा
दिन लागे दोराह पड्यां-नै डाढा भारी
काम बिना ना कटै साल सी रुत आ सारी
पांती-सूं पाणीड़ो लाधै, रात-दिनां कुवटा बगै।
लू ताती तन-में लगै ज्यूं खनै खड़ां मिरड़ा जगै॥69॥
खाट तपै, राली तपै, तन तप-तप तीझै।
भीजै पूर पसेव सूं मन जळ-जळ खीझै॥70॥
आयी अूपरली रुतां सुदी असाढी तीज।
हळ घड़ खेत सुंवारिया, भेळो करियो बीज॥71॥
मिरग बाजिया जोर-सूं रोहण तापी तेज।
नांह अमूझ्यो खोड़ियो, बरसण थोड़ी जेज॥72॥
दिन पळ-छिण सा जांवता आणंद मेह अडीक।
आयी-आयी कैवतां बीतै बखत घड़ीक॥73॥
सावण पैली पंचमी, आ मंडियो असराळ।
थिरचक थाणा रोप दो, ले खेतां हळ हाल॥74॥
अूगंतै-रा माछळा' 'आथण मोग' हुळास।
'बादळ कर गरमी करी बंधी बरसण आस॥75॥
आज असाढी सुद नवूं आभै बादळ झल्ल।
आस गरीबां पोखणी आय कळायण! हल्ल॥ 76॥
आ उतरादी आगळी! मन रंजण किरसाण।
हिव हुळसावण रागळी गीरण तेजा तान॥ 77॥
घड़लां पाणी ऊकळै, चिड्यां धूड में न्हात।
वरसा नेड़ी आ रयी आज तथा परभात॥78॥
सावण पैलै दिवस में बादळियां बिच भाण।
पाणी बरसै जोर-सूं परतख बात प्रमाण॥79॥
आज सांझ आभै रच्यो इन्द्र धनख मन-भाण।
काल कळायण आवसी भरसी ताल-निवांण॥80॥
बादीलै नभ बांधियो पचरंग पेचो ताण।
हरखण लागी धण-धरा सजतो साजन जाण॥81॥
आभै जळ-रो जोर है 'जळ भर चांद जळेर'।
कुंडाळो करड़ो कस्यो सूरज-रै चौ-फेर॥82॥
चैन नहीं चंचोलड्यां, कूकत रैण कु-जोग।
जळहरजामी! नाख जळ जळण बुझावण रोग॥83॥
तीतर तड़कै बोलिया, फड़क्या सुगन्यां चख्ख।
भोरां भड़क्या कूकड़ा, मोरां आणंद लख्ख॥84॥
जळ-कागां जोड़ी उडै, टींटोड्यां-री टोळ।
रोळ-कलोळां पंछियां, चंगै मन-रो चोळ॥85॥
दिन दोरी धण गोखड़ै, सांझ अमूझै सेज।
समर उमाया सूरवां, अंबर तारा तेज॥86॥
धर उमाय धधकण लगी, धोर उमाय उडंत।
वाय उमायी जा रयी मे मिलण-रै मंत॥87॥
'तीतर-पंखी तण रही', जग जाणे करतूत।
सिंझ्या पैलां आवसी सांचो करण सबूत॥88॥
जोग पितावण परतखां लोग बणावै बात।
केकी गोळां घोक सी सुण बोल्या उण स्यात || 89 ||
आभूसण सुरंगा बज्या सावळ बेस अमोल।
पणिहारी–ज्यूं नीखरी पाणी भरणै चोळ॥90॥
घटाटोप गै' री घिरी, तीखा-तीखा टोक।
लील गळे रंग सांवळो, घमघम बाजै घोक॥ 91॥
अर अरड़ा कर चल पड़ी, आवत ल्यायि न जेज।
ज्यू भैंसड़ल्यां भाजती पाडड़ियां-रै हेज॥ 92॥
सिख्खर दिन सामी हवा उठी हलोळा खाय।
मानो काळी नागणी दियो धूळियो बाय॥93॥
अंडै सूं कढ ओलरी आभै अपर आय।
सीर जाण सदियां तणो चेत, हेत मन मांय॥94॥
काठी कम्मर बांध कर नाठी कर मन रोस।
फोस फुंफाणी सरपणी जबर जणाणी जोस॥95॥
आयी भली अडीक पर अंडा टोक उळांड।
मानो भूंकण भेख-में भांडी-करणो भांड॥96॥
भैंस्यां, भैंसा, रोड़िया, हाथी-वाथी आज।
आभै जाणूं रड़भड़ै होळी हुल्लड़ -बाज॥97॥
सूरज नीचे छिप रियो अंबर बादळ होड।
जाण रात राखस उठ्या भूत, भंगूळा दोड़॥98॥
धह-धह धम्माका हुवै, भू-भां कूंटां भूंक।
केकीड़ा कांपण लग्या, मूंढा होग्या फूंक॥99॥
रूड़ी रची कळायणी भूरी भली भटक्क।
मुर-हंदा बंदा गयी ऊंची आंख अटक्क॥100॥
अंबर गहडंबर हुयो रियो घणो मन भाय।
करी अमावस-रात-सी धौळै दिन-री आय॥101॥
आभो उझळ्यो देख कर जड़-चेतन चित चोळ।
मानस सर मन पर हुवै हंसां जीव किलोळ॥102॥
बादळ पसु-मंडळ भजै, लोर-लाय वन-आभ।
धूंआं धोर कागोळियां विध चितरी मरु लाभ॥ 103॥
लाय लगै वन मांय, हबड़ झळ उठै हिलोळा
दड़वड़ दौड़े जीव, ऊंट-हाथ्यां-रा टोळा
पूरो ताण लगाय पसू भय-भरिया भागै
अेढो दीखै नांय, सेर-बकरी सै सागै
आभै जंगळ लाय ज्यूं-ही सूरज आज लगाय दी।
धूंवैं-में पसु हड़बड़ै है, सीबी साफ दिखाय दी॥104॥
नीलै, भूरै रंग-सूं घुळ-घुळ आभै आज।
सुळ-सुळ करती सूंकती अधरी-मधरी गाज॥ 105॥
नांह फोसरी ओसरी, कजळी बणी कलाळ।
सनमुख सूअी धार-सूं ज्यूं दारू देवाळ॥106॥
लुकिया बादळ-बादळी छिपिया अंबर भाण।
भुरज-गुरज परवत जिसा फीस्या फह-फा जाण॥107॥