गाहड़-सूं है गांव, सहर है सो,णा भारी

सुख-सूं भरिया बास, सलूणी रुणकां न्यारी

चोखा चतर-सुजाण बसै मानव मुंह-सेळू

सत-रत भाअी-चार, मिलै मै’मा-सूं मेळ

ब’ना-बेट्यां साख सदीना आखी जातां प्रेम-सूं।

मुरधर मंगळ मरजादा-सूं सदा सुभाविक नेम-सूं॥1

गांव कहूं या अमरपुर, देवां नरां निवास।

भाग भलो अिण भोम-रो, बसिया बसती बास॥2

सूधा सै माणस बसै भोळा भूप निराठ।

‘सत्तर-मत्तर’ ना करै ‘मांगण-आळा साठ’॥3

घर पर ढूंढा गोखड़ा, पडवा थान मकान।

कोठ्यां डीघी कूंपल्यां, ठंडी रूड़ी छान॥4

आगै फळसा ठाटिया, ठाट-बाट धर कोट।

मुरधर घर मंगळ करै, बाड़ां राखै ओट॥5

केळां ज्यूं केलां खड़ी अूंची घणी अडिग्ग।

मुरधर मंगळ कारणी कारज करणी सिग्ग॥6

टाली पीपळ पाळता गाळां आक बबूळ।

रोही रोहीड़ा फबै काढ फूठरा फूल॥7

हरिया-भरिया भीड़-हर खारा जियां अफीम।

मुरधर मिनखां-रै खड़ा हाजर नीम हकीम॥8॥

आक आम सा रूंखड़ा, ओखद सिरसा बीज।

फळां नीकलै चीकणी रूअी बधकी चीज॥9॥

जाळां पर जाळोटिया, ज्यां-रो किसो बखाण।

काबल-रो मेवो कहूं, कै मिसरी बीकाण॥10॥

गूंदी लूंबी गूंदियां, पीळा केसर कूख।

अीमी सा मीठा अजब गजब रसीला रूंख॥11॥

टीबां-री यूं टोळियां ज्यूं टोकां-री टोळ।

रूड़ी रेतां राचता आडावळा अडोळ॥12॥

डूंगी डैर्यां डर बिना, चवड़ा खेत चोगान।

मन हुलसा माणस मिलै, ज्यूं घर-रा मैमान॥13॥

ना बंगाल-बिहार, नहीं अिसड़ी बम्बोई

ना मंदराज-पंजाब, मुलक अिसड़ो ना कोई

ना आसाम-उड़ीस, सुखां-सूं लूमी-झूमी

आखी स्रस्टी सिरै मनोहर मंगळ भूमी

फूली-फली कळायण करै, घणी बणावै मोहणी।

‘तीन लोक-सूं मथरा न्यारी’ मुरधर सोभा सोहणी॥14॥

राजस्थान प्रदेस है सब देसां-रो भाण।

अजब अिलाको मुरधरा, तनिक सकां वखाण॥15॥

रूड़ै राजस्थान बिच मुरधर मंगळ देस।

सगळी बातां सुख घणो, सागण भासा-भेस॥16॥

भाट-बारठां-री क्रिपा सूकै ना सरिता।

मन-भरियै मुरधर भरी कण-कण में कविता॥17॥

साहित राजस्थान-रो आखां रसां अपार।

बिदवों वीर बखाण है आद अखूट भंडार॥18॥

मारवाड़ मन-मोवणी बोलीजै बोली।

सबदां-में मीठास यूं ज्यूं मिसरी घोळी॥19॥

गीत

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कनक कटोरा केसर घोळ

मुरधर-रा अै मीठा बोल

माणस मिलण-सार मन-मेळू सो’णा पुरस सपूत सुजाण

गांव-सहर-रो नहीं गुमान मिलिया, ज्यूं मिलिया मैमान

क्यूं रे वाला! कांअी थारै लकड़्यां-रै लादै-रो मोल

मुरधर-रा अै मीठा बोल॥1॥

सीरी-सीरी बगै बयारी हरियाळी-सूं ओपी भोपी

रोपी जा खेतां-में जेअी देख घटा किरसाणी कोम

हरख भार्यां हिव नाचै मोर ‘क:को-क:को’ करै कलोळ

मुरधर रा अै मीठा बोल॥2॥

जावै छै परदेस पीवजी सायधणां भेजै संदेस

कुरजां, काग-सूवटां सामा काढ काळज्या देवै पेस

‘घेर-घुमेर पींपळी सिरसा’ गीत घणा अदभुत अनमोल।

मुरधर-रा अै मीठा बोल॥3॥

मात-भोम-रो माण जणावै कवियां-री है आदू बाण

राजी रैवै बिड़द बखाण गौरवता-रा गावै गाण

‘जंगळ मंगळ देस हमारो’ हर्या-भर्या अै भाव सतोल।

मुरधर-रा अै मीठा बोल॥4॥

सावण-री मन-भावण तीजां धीवड़ियां मिल जो’ड़ै जाय

गुड्डी बाळ गूघरी खाय मोवण गीत मेहां-रा गाय

‘गुड्डी बळै, गुड्डो रोवै मेहा झुरज्या होळाहोळ’

मुरधा-रा अै मीठा बोल॥5॥

पो फाट्यां हरजस परभाती नर! क्यूं सोवै जाग रे जाग!

हर-वेळां-रो हरि-गुण गुण-गुण सो’णी सांत रसीली राग

बुढळां-रै मुख भजन भैरवी ‘माअी! लियो गोविंदो मोल’।

मुरधर-रा अै मीठा बोल॥6॥

आपस-में सै प्रेम भाव-सूं रैवां खुस भायां ज्यूं भाय

जी-जी कर जिवड़ो हुळसाय होका लेय हथायां आय

बात बीरबल-पातस्याह-री सुणां-सुणावां सै दिल खोल।

मुरधर-रा अै मीठा बोल॥7॥

सारी बातां ठाट सुखां-रा भळै भलेरी धणी धिणाप

रेल, नहर, नजरां ज्यावै याद ज्यावै आपोआप

‘जय जंगळधर पातस्याह-री खमा-खमा खुस मन-रो चोळ’।

मुरधर-रा अै मीठा बोल॥8॥

बीकानेर अिणी-रो नाम

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धरणी-धणी नीत-धर मन-रा बंका वीर राठोड़ रणां-में

धीर-धरू दानी दुनियां-में रैंवतड़ा सिरमोड़ घणां-में

जिण-रा अूँचा-अूँचा काम।

बीकानेर अिणी-रो नाम॥1॥

बीकाजी, कांधलजी जिसड़ा बात बडेरी मानण-वाळा

आस्वासन पा, मां करणी-सूं बीकानेर बसावण-वाळा

दुसमी दळिया दामोदाम।

बीकानेर अिणी-रो नाम॥2॥

राजा रायसिंघ सा दानी पिरथीराज सा कवी हुवा है

पाणी-पूरी सूरी वाणी सबद नीचला अमर हुवा है

माअी पूत ‘पतै’ सा जाम।

बीकनेर अिणी-रो नाम॥3॥

साधारण सी बात नहीं ही, ओरंग-री ही रीस अथिग्गी

आखड़ती रजपूती राखी आखी डिगती ‘करण’ अडिग्गी

नृप देवां-में अिन्दर जाम।

बीकानेर अिणी-रो नाम॥4॥

गयंद मुगल-दळ, पदम-केसरी तेज सिंघां ज्यूं ताव दिखायो

साह सभा-रो कांप्यो हांप्यो डरतो डांगर जियां डिडायो

तुरंत तोड़ दी रीस तमाम।

बीकानेर अिणी-रो नाम॥5॥

पग-पग पर नृपवर परतापी बंजड़ निरमळ नीर बहायो

नहर महर कर टीबां टोरी, पाथर माथै फूल उगायो

लिछमी-रा घर बणग्या गाम।

बीकानेर अिणी-रो नाम॥6॥

विद्या-सागर,आगर गुण-रो, जगत-उजागर, परजा-प्यारो

रेल मेल कर नहर मुलक-सूं फोड़ो मेट गयो जनता-रो

ले मन परमारथ-रा काम।

बीकानेर अिणी-रो नाम॥7॥

अैड़ी शिक्षा और कठै है? मुफत मदरसा अठै घणाअी

श्री अनदाता माय-बाप ज्यूं पांवतड़ा पुनवाळ भणाअी

चिरजीवो रइया-रो राम।

बीकानेर अिणी-रो नाम॥8॥

पूजनीक परजा-री माता रैयत-री राखै रिछपाळां

महाराणी घणी खुलवावै नार्या-ताअीं असपतालां

धणियाणी दया-रो धाम।

बीकानेर अिणी-रो नाम॥9॥

श्री-मा’राज-कंवारां जोड़ी ‘करणी अमर’ करनळा माअी

बधो बेल ज्यूं राज-कडूंबो वैभव बिलसो, बजो बधाअी

प्रजा मुदित-मन करै प्रमाण।

बीकानेर अिणी-रो नाम॥10॥

कवित्त

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धणी धरम-अवतार राम साख्यात रयत पर

गंग जिसा गुणवान बडा गौरव-रा गिरवर

करी भली रिछपाळ, बणायो मुरधर प्यारो

पग-पग सुखां अथग्ग, सुरग सो सोवै सारो

राजा-परजा साख सांचो, आछो भळ बीकाण है।

घण रेलां, नहरां, मदरसां अूंचा नाम, निसाण है॥22॥

पंडित-जन कुळ जगां धरम-रा धणी रुखाळा

मुनियां-री मुरजाद देय उपदेस निराळा

आद आरिया-रीत बतावण बातां चोखी

दोखी फैसन तणा, संस्करती-रा सोखी

हित सोचै हिंदवाण-रो चित-सूं दादा मुरधरा।

भारत रामचरित-रै मांझै वैण खूब कैणा खरा॥23॥

रजपूतां काम, अूजळो जस फैलाणो

रजपूतां-रो काम सदा परमारथ जाणो

रजपूतां-री आण सुणै दीनां-री वाणी

राजपूतां-री सान सदा पर-पीड़ पिछाणी

रजपूत ही सांचा रक्षक मुरधर जंगी देवता।

रखवाळी रैयत-री राखै मदद दुनी-नै देवता॥24॥

‘जाट आगड़ा थाट’ जकां-रा काम जड़ींदां

घरां घणेरा घड़ा, घीव-सूं चोवै पींदा

पाणी जियां पळींड, भर्यो घर घी-सूं भारी

मोठ-बाजरी-ग्वार घणखरी भरी भखारी

दूध-दही-री नदी बैवै गायां-भैंस्या कारणै।

सांढ-टोरड़ां-रा टोळा सा जाटां-ही-रै बारणै॥25॥

दानी सा दीखै नहीं पण दानी है भोत।

मुरधर आभो ऊजळो जाटां दान-उदोत॥26॥

जांचण-आळा जाणता जाटां तणी बलाय।

ढाढी-ढोली लांवता टोडी-टोड खुलाय॥27॥

बसत्यां-में बाणिया रोपवै रूड़ी हाटां

गाहक जठै किसाण, जकां-री कूटै टाटां

घाटू बाटां घाल, लेय जद बाधू बाटां

छोटा गांवां मांय म’धनी मा’जन माटां

धोरां धूड़ उडै जद वोरा धुरियां-नै धन देवणा।

हुवै कळायण-री क्रिपा जद पाछा कम क्यूं लेवणां?॥28॥

मुरधर-रा माणस निडर चतर चोखळै मांय।

लावै अक्कल आप-री सम्पत-मता कमाय॥29॥

कारखान कटळान कंपन्यां चलै करोड़ां

देसां-देस दुकान, मीलड़ी ठोड़ां-ठोड़ां

अरबां-खरबां माल, वस्तुआं बेचै सारी

मुरधर लिछमी-पूत मनाफो राखै भारी

बिन पूछ्यां बलायत पूंच्या मारवाड़-रा मानवी।

धरम करण-में हुया नामी दूर-दूर तक दानवी॥30॥

अूंची खड़ी अकास झरोखां-टोडां झेली

रंग-रंगीली घणी बणायी सेठां हेली

सोनै-हंदा मौ’ल सजाया साहूकारां

अिसड़ा कळू कुबेर गिन्नियां भर्या गुंभारा

किसो बतायीजै घरां-रो नंदन-वन सो सुख घणो।

अन-धन लिछमी बधै सहरां, भारी सुख भोगणो॥31॥

नाअी, खाती, नाथ, सुनारां और लुहारां

अपणा-अपणा काम किसब-सूं न्यारा-न्यारा

दरजी, छींपा, भाट, गुसायां, जोग्यां, साम्यां

कूंभारां, मोच्यांह, बळायां, थोर्यां, बांभ्यां

घटा थाट अेका करै के साधू, के सेवड़ा।

छोड काम आप-रा आखा सांभै जेअी-जेवड़ा॥32॥

छोटी-मोटी जातड़्यां जाणै किसब अनेक।

मिनख जमारा-में घणा चतर अेक-सूं अेक॥33॥

कार करै, बेजा बणै, रुअी रेजा कात।

भर सेजां अर सीरखां देज्या रातूं रात॥34॥

बिड़द बामणां बडो, आबरू सेवा सेती

करै आप-रा काम, खरी चौमासै खेती

कअी नौकरी करै, दिसावर कअी दुकानां

काम किसा ही करो, अंत-में मोटा मानां

गांव-गांव भली जजमानी, गुर-जन मालामाल है।

मौज कळायण-री मया-सूं हरजस गावण हाल है॥35॥

हूंता आया आद-सूं मरद सागरां मन्न।

जळ बरसाय बणावती तेदज धरा-रो अन्न॥36॥

धिन-धिन तोय कळायणीं! मुरधर-हंदी माय!।

आछो अन अुपजांवती खायां-सूं गुण आय॥37॥

अिणी भोम भयि पदमणी, अिणी भोम भामाह।

वीर अनेकूं तेजवी, वित-तन बेपरवाह॥38॥

वैभव भोमण सोख ना, मौत मूंह-री सोख।

जीत्यां जाणै आवणो अेथ लजूंता लोक॥39॥

मिनखां किसड़ी बात, जिनावर माण जणावै

सिंघ, बघेरा, न्हार, तेंदवा नहीं डरावै

धोरां राखै धीर, मसत राजा जंगळ-में

माणस मिल्यां अधीर विकट बंजड़ दंगळ-में

मुरधर भोमी! तू बडी है, देवै आछी बुद्ध है।

बन बसंता जीवां मन-में नीवत अिसड़ी सुद्ध है॥40॥

ठाणां ठैर्यां रवै अूंट असराळ बिलाळा

झूठा नाखै झाग, चरै ना नीरा-पाला

गाळां भज्जण गजब चालड़ी लचपच लोचां

आं अूँटा-रै हेत सफर म्हे सोरी सोचां

कोड करां, कतारां लादां, राजी अूंटा-सूं रवां।

मुरधर मंगळ करण प्राणी, अिण कारण घण सुख सवां॥41॥

खूटां पर झूठा खड़ा लूंठा देवळ-रूप।

सोरी सफर करावणा, भोमी मिणवां भूप॥42॥

काळ काँटै पूंछ भल, तीखा तणवां कान।

जै-जै कर जैकाणता जावण चावां जान॥43॥

चाव चढायी जीन कर, चौरासी बाँधेह।

मुरधर माणस भोगता स्रग-सैनाणी अेह॥44॥

पैंडै-रा वैरी इसा जिसा चिड़ी पर बाज।

पांख-भुजा पतळी नळ्यां मुरधर अुडणी जाज॥45॥

काळी कबरी लाल घणी है धेनां धोळी

ढींक बाछड़ा प्रेम भरै गोहणियां भोळी

अिमरत सिरसो दूध देय दुनियां-नै पावै

माखण अर मिसटाण माणसां खूब खवावै

रतन तेरवों घीवड़ो है दूधां-ही-सूं निकळतो।

‘ढोळ्यां’ बोदी बाड़-में भी भाजण-रो करती मतो’॥46॥

बड़ा हुयां बाछड़ा खींचवै हळिया खेतां

लादै बेहद बोझ, गुड़ावै गाडी रेतां

जूतै जुग मजबूत, पीठ पंजाळी राखै

अूँडो नीर निकाळ कोठ पल-में भर नाखै

पीवै आखा जीवड़ा जळ गुण गावै बळदां-तणो।

करै जंगी बळद कळायण पावस भर पोरस घणो॥47॥

भैंस-रो गीत

(हास्यात्मक)

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भंडाण-री भैंस भवानी है

मुरधर-री भल मेह राणी है

लाली आँख्यां, भँवराळी है जाणै क्रोधित ज्यूं काळी है।

सुरराटां-सूं खळ खावै है छांयां बैठी मसतानी है।1।

मुरधर-री भैंस भवानी है

जिण-रै घर-में राणी है अुण-रै घर अुजळो पाणी है।

होळी सो हरख हमेस रवै घर-में घी दूध-री घाणी है।2।

मुरधर-री भैंस भवानी है

बूढी हुयां मरजावैली तो भी सुख पोंचावैली।

मरियां अूकलसी मालक-नै अब लांबी लाव बणाणी है।3।

मुरधर-री भैंस भवानी है

पाणी जिण-सूं खींच्यो जावै सै जीव जिणां-सूं सुख पावै।

अिण-रा गरमी-में गुण गावां जद पीयो जावै पाणी है।4।

मुरधर-री भैंस भवानी है

अिण-रा कटड़ातकड़ा होवै बै बडा हुवै जद अन बोवै।

नाकां-में नाथ सजायीजै ऊपर ढोयीजै पाणी है।5।

मुरधर-री भैंस भवानी है

हरियाळी-सूं है राजी चरणै जावै भाजी-भाजी।

पाणी-में आय बिराजी है तो ढूंढत फिरै धाराणी है।6।

मुरधर-री भैंस भवानी है।

पाणी-सूं भारी नाता है जाणै मछली-री माता है।

जद-सूं किसाण ले पाळी है मिटसी सा खैंचाताणी है।7।

मुरधर-री भैंस भवानी है।

घी दूध-दही जिण है खोयो पकवान माल भी बणवायो।

उण-रै घर कदे भैंस्यां हो बो देखै भैंस्यां खानी है।8।

मुरधर-री भैंस भवानी है।

म्हारै मन होयो सोच खड़ो होवूं भैंस्यां-रो भगत बडो।

हूँ दूध पियूं बेन-दर्द रवूं आ-ही आछी जिंदगाणी है।9।

मुरधर-री भैंस भवानी है॥48।

भूरी काळी भैंस दूध देती भल मीठो

पाथर जिसड़ो दही किसी पसु-रो ना दीठो

मानो मीठी खीर, खावतां हिवड़ो हरसै

खाय रवै अिक जाड़, दूसरी देखत तरसै

गायां-भैंस्यां-घी-सूं वणै चीजां बे-तादाद है।

सीरा सरब, मिठायां सगळी सरस सलूणी स्वाद है॥49॥

अेवड़ वधै अपार भेड-बकर्यां मिल भारी

ब्या जावै दो बार बरस-में आयां बारी

भेडां उतरै ऊन, बणावां गाभा सारा

दोवड़, लोवड़ियांह, कामळां और लुंकारां

भाखळ कामळ भळै पटुड़ा घरां घणी टूटै तणी।

बकर्यां वाळा बणै बोरा, अिण धन-सूं पैदा घणी॥50॥

घर घोड़्या जोड़्या घणेरी गाड्या गांवां

रूणकत रथ-बैल्यां सजावां ब्यावां-सावां

घोड़ा पंच-कल्लाण हिणहिणै लीला राता

‘बातां करणाबाय’ तेज-सूं भाजै ताता

मेळां-मगरियां-री दौड़ा पोडां बाज सुवावणी।

अूभा अूंट कनौती आछी घुड़-दौड़ां मन भावणी॥51॥

आछो अूजळ देस घणां घर थरपै थेड़ी

चोखा चानण चोक मनोहर अूंची मेड़ी

सा-पुरसां परवार बाळका प्रेम-बतूळा

बड-गोतण नार्यां सत्यां ज्यूं सोहै झूलां

धरम-पुन में लगी लजाळू सील सकल सिणगार है।

गांवां छायो घर-घर मंगळ जंगळ सुख-रो सार है॥52॥

जळहरजामी बाप मात ज्यूं रातादेअी

राम-लखण सा वीर राधका-सी भोजाअी

आळी-भोळी बै’न बनोअी गायड़मल सा

अीसर-गौरी जिसा रवै दम्पति मलमल सा

मरद अठै अमराव saa कँवर कदा-में केळ ज्यूं।

मुरधर-रा नर मेळ राखै बधै कडूंबो बेल ज्यूं॥53॥

सावतरी सी सास बिलोवै सोमण थामां

ससुर जियां सिर-मोड़ जकां-रा है जी जामां

पौ-रै तारै उठै बीनणी छोटी-छोटी

बहू बडोड़ी बैठ रसोयां पोवै रोटी

नणदां बिच पुरसती है जीमतड़ां-री पांत-में।

जेठ, जेठूता, सास-सपूता जीमै मंगळ साथ-में॥54॥

लिचपिच लापसड़ी तीज त्यूंहारां ताअीं

तेवड़ तीस-बतीस सोवना थाळां मांही

पीढ़ा लाल-गुलाल ढाळ, धर भोजन ऊँचो

घीवड़ घालै खाळ चीकणो करणो पूंचो

फोफळां खेलरां फळियां सूकां सागां आब है।

बड़ी पकौड़ी कढ़ी रायता मंगळ रूड़ी राब है॥55॥

रंधी गुदळवी खीर, अूपर सक्कर-घी राळां

पतळी पोळी पुयी, मूंग मोठां-री दाळां

दही कठमठो भैंस भूरड़ी-रो मन-भाणो

मन-हंदी मनवार, जुगत-रो जीमण जाणो

सारी बातां करी कळायण ठाट उणी-रै कारणै।

आया-गया बटाअू जीमै, मंगळ मुरधर-बारणै॥56॥

अमल सुपारी अेळची होकां चिलमां चाव।

मुरधर नर करता नसा ना ठाली’ अन ठांव॥57॥

कठै कामड़ा बैठ जांगड़ां-नै झख मारै

कठै जांगड़ा बैठ कामड़ां-नक़ल उतारै

कठै दमामण बैठ जवांयां मूमल गावै

कठै गितेरण बेठ देवां-री रात जगावै

कठैक भोपा छंद गावै, कठै फकीरी वाणियां।

कठैक मुरधर मंगळ माटा पाबू-री पड़ ताणिया॥58॥

रहणा भाअीचार-सूं हिन्दू-मूसळमान।

मुरधर मंगळ मोकळो सुख है सुरग समान॥59॥

मुरधर

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मुरधर कितनो बणियो सोणो।

जिणरो कितनो रूप सलोणो॥1॥

धरणी सुख-देवाळ धिराणी।

दुधां जिसड़ो मीठो पाणी॥2॥

डर अजाण वीरां-रो डेरो।

अन-धन देती भोम घणेरो॥3॥

पीळी रेतां रूप-रूपैली।

चमचम चमकै धरा सुनैली॥4॥

ग्यान गुणां-रो झरतो बेरो।

सुरगां जिसड़ो सांझ-सबेरो॥5॥

रूड़ी रूतां राचती चोखी।

सांच-मांच छिब बणै अनोखी॥6॥

उमस जिसा दुख लगै अधावण।

तो बरसै व्रछ-कळप कळायण॥7॥

हरी-हरी बणराय दिखाती।

ठंडी करणी लोयण छाती॥8॥

पड़ै पोह मी’ण जे पाळो।

लूवां ले जाय उनाळो॥9॥

छोटा-छोटा दुक्ख बणाया।

जिण पर मोटा सुक्ख लगाया॥10॥

म्हांरो मन सुख भोगणवाळो।

मुरधर मिळियो देस निराळो॥11॥

बसतां-री विनती सुणज्यो।

करता! अितरी किरपा करज्यो॥12॥

‘संस्कर्ता’ यूं कवै विचारी।

जलम अठै हो बारूं-बारी॥13॥

स्रोत
  • पोथी : कळायण ,
  • सिरजक : साहित्य महोपाध्याय नानूराम संस्कर्ता ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य एवं संस्कृति जनहित प्रन्यास ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
जुड़्योड़ा विसै