मिनखां चै’रा—चेळकै, खगां गीरिया गाण।
जगां जिनावर छोडग्या, बिरखां महक हराण॥1॥
कुदरत कोरी कांठळी गड़-गड़ गाज्यो जोर।
कह-कह करै कलोळियां कूदै खुस मन मोर॥2॥
मुरधर-मरवण दाझतां आभो-पीव अधीर।
हांफत नाखत नीर यूं खुद तन गै’री पीर॥3॥
मुर-थळ जळतो देखकर आभो रोवण लग्ग।
लोयण बादळ बह चल्या, आंसू-नीर अथग्ग॥4॥
अिन्दर राजा आविया गरज-म्रिदंग बजाय।
दरड़-दरड़ पाणी पड़ै पोटां-पोटां आय॥5॥
अड़ड़-अड़ड़ खड़का हुवै, धर धूजै धम्मूक।
दड़-दड़ डग्गळिया डिगै, पड़-पड़ पड़वा॥6॥
च्यारां कूंटां अेकसी बरसण लागी आय।
मुरधर हंदा मानवी रह्या बो’त हरखाय॥7॥
आसरियां-री छात-सूं नाळा चाल्या चट्ट।
खाळा खेतां-में चल्या रेतां रंच रपट्ट॥8॥
छळ-छळ पाणी छळ-छळै गाळयां गांव अखंड।
दूधां-वरणां हो रयो आभो धोळो-पंड॥9॥
देख कळायण दया प्रेम बरसावै पाणी
बरसत बीती पो’र, ठमै ना लेण विसणी
चिलकै चांदी जिसो पड़्यो पाणीड़ो घर-घर
बीजळ पळकां बणै पा’ड़ सोनै-रा सरवर
धर आभा सैंचनण कीनी, खूब रचायो खेल है।
आज सुवाणी सांझ बणायी, आयी बीजळ वेळ है॥10॥
आभो अभिनय सो करै धर-धण-नै दिखलांण।
सीन लगी पळ-पळ नया बीजळ-वेळ बणांण॥11॥
कदेक सहर दिखाय दै, कदेक जंगळ जोर।
कदेक सरवर परवता, कदेक संगर सोर॥12॥
चालै ज्यूं बंदूकड़्यां, गड़-गड़ छूटै गोळ।
भाव अनेकूं यूं भरै अभिनय करण अमोल॥13॥
आभो-चीर अुघाड़ खिण चंचळ बीज झपट्ट।
लोयण लप्प मिंचाय दै घोर अंधार घपट्ट॥14॥
खिण अंधेर अधावणो, चट चांनण राचै।
बीजळ और अंधेर मिल ज्यूं कबडी वांचै॥15॥
व्याप्यो रोग बिजोगणी चमकत देखी बीज।
अंजस अधगैली हुयी प्रीतम अूपर खीज॥16॥
पळका मत कर पापणी! गाज मती असमाण।
रे बयार! मत बैर ले, विरह-पीड़ पैचाण॥17॥
राजी घणी संजोगणी रवै झरोखां झांख।
आभै-सूं अरजी करै, बीज-झपट्टो नाख॥18॥
खुद सगळा ही भूल-सूं मारु-वदन निहार।
सुख-बधावणी बीजळी! छिप मत, पळको मार॥19॥
खिंवती देख बीजळी अिण विध बाळ हसंत।
अिन्दर-राज-रसोवड़ै चूंटां दीव चसंत॥20॥
लाळटेण बीजळ लियां मुरधर फिरै कळाण।
विपत्यां खोज भजांवती प्रीत पुराणी जाण॥21॥
रुपी कळायण रात-री बरसण ‘मूसळधार’।
‘गळी लारली-सूं गयो’ हरख झड़ी-सूं हार॥22॥
गरमी दिवी गमाय आज ‘बाजंतां ढोला’
चलै फांफ पर फांफ, रीळ सीळी झकझोलां
माणस बैठा मांय, बा’र काढै मुख मोखी
अरे! पून रुक जाव, लुवां थारै-सूं चोखी
चुवै टापरा रात-रा सै टप-टप टपकै टाप है।
अबै कळायण! ठहरज्या तूं धरा गयी सा धाप है॥23॥
आभो अवछळ बरसियो, फाटण लागी भाख।
कवळ कळायण पूरियो, बरसण काठो राख॥24॥
रात्यूं डर ही-सूं रिया, जाण्यो पड़सी छात।
दिन अूग्यां, कांपण लग्या, डक-डक बाज्या दांत॥25॥
अेथ कळायण! अूभ अब, अितरी बण न अुदंड।
बीयो दिन अूगण लग्यो, बरसी रात अखंड॥26॥
ले बारयां टूणां करै नारयां पाणी तोल।
भूरी, भूखी, भाजणी, खाय पावसी खोल॥27॥
बादळ छोटा बाळका आभै-कोठै आय।
आळां नाळो काढियो, पाणी रह्या बुवाय॥28॥
बीजा मिलै न चीरड़ा, बैठा टाबर हार।
पळ भर-में जावै कियां पाणी आरो-पार॥29॥
खाद्रा सूं भय खांवता आद्रा दिया धपाय।
धरा चुसायो चोगणो नीर सोगणो नाय॥30॥
संख नगारा मिंदरां बाज्या थामण जोग।
माय कळायण! मार मत, धाप्यो मुरधर लोग॥31॥
कासब-सुत अूगण लग्या, सांचा होग्या सूण।
अेकड़-दोकड़ छांट ज्यूं बरसै देवां चूण॥32॥
हरियां बिरछां बोलिया सूवटिया सोरा।
पांख संवारै प्रेम-सूं मन हुलस्यो मोरां॥33॥
रळ-मिळ रुळता बाळिया खोखर मांखर जाय।
धड़-धड़ धूम मचांवता पोखर-में पड़ ज्याय॥34॥
खळ-खळ खेलत खाळिया, ताल्यां हाल्यां जाय।
होडा-होड फदाकता जो’ड़ै-में जुड़ ज्याय॥35॥
नीर आंगणां बीच हवद ज्यूं लहै हिवोळा
बाखळ बावड़्यां ज्यूं खीर भर खादर-खोळा
गळियां हंदो नीर गयो गिरनाणी सारो
हाय! गयो बेकाम ‘लाली लेखैहि बारो’
पाप-दुकाळ सा काटणी सुरग जिसा सुख लावणी।
मुरधर-री गंगा बही है भागीरथी कळायणी॥36॥
जो’ड़ा भरगी जाह्नवी आभ गंगोतर फाड़।
रेत करी जिम रेणका, परतख टीबड़ पा’ड़॥37॥
पाणी पाळां पर चढ्यो टीबां टूटै खोळ।
नख जितरा रीता नहीं, जो’ड़ा हब्बा होळ॥38॥
खाडा, नाडा, नाडिया सभी हुया सम ताळ।
धर धोळी यूं चिलकती, ढाळी चांदी गाळ॥39॥
पाणी ही पाणी पड़्यो ओड़ां-खोड़ां आय
गंग-नहर ज्यूं गंग-री मुरधर जळ लै’राय
मुरधर जळ लै’राय धोरियां धान अुगावण
काटण दुख-दुरभिख्ख समो कर सुख अुपजावण
काळ नसावण कळा धणी धणियाप पिछाणी।
चेतै आपो-आप देखतां पग-पग पाणी॥40॥
अुमस कळायण तापता जद करता अरदास।
विणत्यां-रा वर तैं दिया राखी आखी आस॥41॥
रावण-रोम सो रोस तावड़ो तपतो भारी
लूवां-राखस रूप नरां-देवां दुख-कारी
बादळ बानर-सेन, कळायण-राम रियायी
छांट-तीर छिटकाय फांफ मिल फेर दुहाअी
मुरधर-लंक निसंक कीनी, सुख-जळ दीन्हो आज है।
सुर-समान kकिसान खुसी-सै, बभीखण-बरखा राज है॥42॥
राता-माता धोरिया, पाणी रेला-पेल।
ठंडा होग्या ठै’रग्या, भूल अुडण-रा खेल॥43॥
हिरणां छोडी आखरी फोगां भरण फदाक।
आंसू पूंछी आंखड़ी खाय न खारा-आक॥44॥
कीनो बरस कळायणी हिव-हिव हरख हुळास।
अेक रैण भर बरसकर करियो मरु-कवळास॥45॥
आभै बादळ-चूंखलां, किरणां गिणै न काण।
मानो पाणी-पाण मिस दयी बादळ्यां छाण॥46॥
आभो गाभो सो हुयो साबण-धोयो धप्फ।
नील दियो सो नीखरयो् निरमळ सोणो सप्फ॥47॥
डै’रां डांड्यां भाण दी पाण चिलकण पाण।
ओ खेलो देखण तणो, भाखण नहीं बखाण॥48॥
सौ-सौ कोसां अेकसी बरसी सागण बाण।
कोड करंता जा रिया देखण खेत किसाण॥49॥
बेगा पूग्यां खेतड़ां ले मेहां मन चोळ।
केळ झबरखा देखिया, डै’रयां भरी अडोळ॥50॥
बाड़ां बै’री-सी बणी गै’री झाड़यां झूल।
न्हाया निरमळ नीर-सूं कीकर, कैर, बबूळ॥51॥
सुगणी संतोखी धरा पालर पाणी पेळ।
मुरधर-सूं मन-सूं मिली बिछड़ी बीजळ-वेळ॥52॥
बगै किसाण अुंतावळा, रात दियो घर छोड़।
‘करै न दूजो अूमरो पैलोड़ै-री होड’॥53॥
छोड धरा गरमी गयी देख कळायण कथ्थ।
घर छोड़या त्यूं हाळियां हळियां मेलण हथ्थ॥54॥
हळ जोड़या जिण बेर धोक यूं देवण लाग्या
दिखणादी कर पीठ जोड़ कर मांगण लाग्या
देयि घणेरा धान नाथ! खरबूजा खीरा
सीरां जिसा सुवाद आलड़ी और मतीरा
कैअी कवै, दिज्यो दयाकर, बगत बटावां भाग-रो।
कैअी मांगै टाबरां अर चिड़ी-कमेड़ी लाग-रो॥55॥
भोम लखावै लील सील-सूं लूमां-झूमां
फूटै फुठरा फोग रूंखड़ा रूंमां-रूंमां
लाग्यो हरियो बाग़, देख माणस मन भरवै
महकां मरवां फूल, फुदकता पंछी फिरवै
भतवारण अूंगते सूरज भातो ले खेतां भगै।
हळी हळायां बीच हरखता ‘तेजै-रस रीझत बगै॥56॥
लुळवां सींगां गोळ मुख, भारी-भरवीं पीठ।
भोम-भटारा मापता हळ-नै रया लठीठ॥57॥
पीवर-कंध अबंध-बळ जाकां-री जोड़ी।
ताती जाती-रा जबर ज्यूं तेजण घोड़ी॥58॥
सखरी बरसी सांवळी खेतां हरख हिलोर।
हळ बावतड़ा छेड़ता ‘तेजै तणो झिलोर’॥59॥
छिन-में छोटा छांवळा, छीन तावड़ खोटा।
पटकै पळ-पळ में घणो पाणी भर पोटां॥60॥
चभळ-चभळ कर चालता ढळतै पाणी पाळ।
तापड़ता तिसळत पड़ै तिरणै तांअी बाळ॥61॥
खेत मांडता खेलता बाखळ बाळ अबोध।
रोड़यां राजी रिड़कती, ग्वाड़ दडूकै गोध॥62॥
पणिहारी मिल जाय नीर सरवर-सूं लावण
बणा झूलरो बगै सहेल्यां लै’रो गावण
मीठी राग मलार सुणै जद मेह रिझालू
बरसै झीणी छांट भिजोवण झीणा सालू
सांच-सांच लै’रो भिजोयां हांफतड़ी घर आ रयी।
चटपट चीर निचोड़’र गोखां झटपट जाय सुका रयी॥63॥
ताल तळैयां डै’रियां रचै पंखेरू रोळ।
डेडरिया डर-डर करै छीलरियां-री छोळ॥64॥
धोरां पर मामोलिया जोवां अिसड़ी जाण।
छिड़की रोळी छांटड़यां आभै अपणी बाण॥65॥
रात्यूं चमकै आगिया, दिन चरचरियां गाण।
सोन-चिड़ी अुड मौनसी देवै सुगन सैनाण॥66॥
स्याम सरूप सुवावणा भंवर करै भरणाट।
गरज निसाणां नाखगी कागोळ्यां तन काट॥67॥
गीला दीखै तालड़ा, अीला दीखै ओड़।
सीला होग्या फोगड़ा, लीला-लीला खोड़॥68॥
तीजै दिन ही मोथ तालियां हरया दिखाया
गायां-भैंस्यां दांत रुगड़ती मन हरखायां
अेवड़ भर लै पेट, खोद खुर जड़-सूं खावै
बछड़ा कटड़ा कोड करंता चरणै जावै
बोझां, बांठां, बीच बाड़ां, लीलोती दीखण लगी।
मूळां-सूं दुपन्नी बेलां अूंची अब आवण लगी॥69॥
लीली मामालूणियां, कागा-रोटी खोज।
धोरां फूटी फूमड़ी, टाबर खावै रोज॥70॥
पानां छायी बेल, व्रखां हरियाळी भारी
अचफळ अंकुर अुफाण तिणां तरुणाई धारी
जळ भरिया जो’ड़ा अणूंती हुयी लखावै
डेडर डर-डर करै हरख भोमी भरणावै
बीर बण बरसाळो बालो आयो मुरधर-बारणै।
हरै वरण-रो बानो पहरयो बागड़ बिपत बिसारणै॥71॥
साधू-संत मुणिंद बंद कर आणा-जाणा
बैठा बाड़यां बीच देख सुख देव-सथाणा
मोरां-रै मन मोद, पपीड़ा बोलण लाग्या
अिन्द संवारयो आभ बादळी-बादळ भाग्या
कांठळ जळ घणो बरसावै, थमै-न ब्रहणी-नैण ज्यूं।
दसां दिसावां पाळ-पत्थरां पड़ै पिघळतै-मैण ज्यूं॥72॥
कुरजां, कागां, सूवटां, विरहण कवै सनेस।
पंछ्यां! कहज्यो पीव-नै वरसा बरसै देस॥73॥
धर-आभो आणंद-में आणंद बादळ-बीज।
घर-अुजास! थे आवज्यो, आयी सावण-तीज॥74॥
जके अकेली गोरड़यां गावण चाली गीत।
‘सावण लै’रो पीपळी’ चौमासै-री रीत॥75॥
चहळां-पहळां चाव-सूं पीढ्यां हंदी प्रीत।
गावम बैठी बै’नड़ी ग्वाड़ विचाळै गीत॥76॥
भ्रात! रीत-सूं रसभरया समझो गीत गंभीर।
‘खेतां थारै मेवाड़ो, अब घर आज्यो, वीर’!॥77॥
जोतां चाढ़्या खेत मुळकता हाळी राजी
भोमी भोत अळीक खुसी-री मारी बाजी
अूग्यो आछो धान, अूमरां बा’रै आयो
डोळ डै’र डहडात घास मिल धान लैरायौ
क्यूं हंसिया हळ वाय बावळां! राखो कांस निनाण-री।
लेसी कसिया कस घणेरो कूंत करण किरसाण-री॥78॥
हळ छूट्या, हाळी पड़्या सुख भर नींद लियांह।
परवा बीजै बीजणो परमळ अथक लियांह॥79॥
तीसां रातां टिंडसी सिट्ठा साठी जोग।
ग्वार-फळी चाळीस-सूं पकै भलेरा भोग॥80॥
डै’रया नांय डचाम लापड़ी लूमै डै’री
सेवण सिट्ठा काढ खड़ी खिदमत अठपै’री
धोळयां जावै ढीक चरण जंगळ मै’माणी
स्वागत सेवण खाण पीण-नै पालर पाणी
काळी-भूरी भैंसड़यां भी रोही-में चरती फिरै।
नाहर नेड़ो नांय जावै, सूर जाण सूनो डरै॥81॥
गायां लीली हुयी खांवती लीलो राजी
भैंस्यां भाजी फिरै बणी मतवाळी ताजी
बिरछां आछी ओप, फोगड़ा फबै निराळा
खेजड़लां-री छांय अुडावै मौज गुवाळा
सुखड़ां-री यूं करै सरावण, आणंद देणो बरस है।
आखी धरा मंडळ मांझै करयो कळायण हरस है॥82॥
करवलिया कूदै फिरै गूंजै गिटणां गोड।
मुरक-मुरक लीलो चरै राती, भूरी, टोड॥83॥
भैरूंजी-रा गीतड़ा गावै खेलण-सार।
किलकै खिल-खिल अूछळै अूंट चरावण-हार॥84॥
‘गायांळो गिलरां करै’ बाग डै’र बिलमाय।
लाकै चढियो ल्हांग दे सूतो खेस बिछाय॥85॥
रिगल करै, रेवड़ चरै, भेड़ां, बकरयां, ठाट।
मुरधर-मंगळ मानवी जंगळ राजी जाट॥86॥
बछड़ा बगै कतार, लार ललकारै ग्वाळा
कर कोडां किलकार मुळकता मन-सूं बाळा
सुर-सूं भेळा गाण जंगळ-री मौजां माणै
टुण-मुण टाल्यां बजै बाछड़ा चरता जाणै
धर लोटड़ियां डेरा ना’खै हाथ हिलावै गेडिया।
अलगूंजा जित बैठ बजावै झख मारै अुत रेडिया॥87॥
सावण सुरंगी तीज, धीवड़्यां सरवर धावै
गुडियां जळा-बळा गूघरी बैठ सिजावै
अूंचा कान लगाय सुणै अिन्दर धररावत
आभै खानी जोय गीत मेंहा-रा गावत
‘गुड्डी बळै, गुड्डो रोवै मेहा! झुरज्या जोर-सूं’।
लूम-झूम सहेल्यां झूली आयी घटा हिलोर-सूं॥88॥
बिकाणी-सावण
आ मालक-री मै’र देस बिकाणो न्यारो
पर वरसा-में बणै घणो परकरती प्यारो
हरियाळी छा रही भा रही भोमी सोणी
मिनखां किसी मजाल मुन्यां-देवां मन मोणी
च्यारूं दिसा दिवाल है हरियाळी
हीरां, पन्नां, भीत, बणायी ब्रह्मा-माळी
धर पर सोवै लाल ममोल्यां चून्यां जिसड़ी
जाणूं भोमी हार हियै पहरयां हंसतड़ी
अूभा बिरछ अनेक अेक-सूं-अेक रंगीला
तांसू तार तमाम फूल-फूळ फबै फबीला
कठै पानड़ां प्रेम कठै बेलां-रो बासो
कठैक झाड़्यां झुंड झुक्यो झड़ खीचड़ खासो
काचर काकड़ियां मतीरा मूण-पठाळां
बेलां केलां नाळ अचपळा चढ़ता आळां
जोड़ जंगळां खेत छीब छबि चोखी चंगी
गगण धरण-रै गाण सजै भंवरा सारंगी
छीलर ताल तळाव झील पालर जळ सैवै
नाळां निरमळ नीर निवांणां भाज्यो बैवै
मनड़ा खोलै मोर पंछीड़ा बोलै प्यारा
गिरै चरचरयां गीत बजावै बीज नगारा
दादर भादर निडर कूदता-फिरता गावै
झींगुर जोड़ कतार सतारां तार सजावै
जाणे तीनूं लोक सोक भर सुखमा छीनी
बीकाणै-री भोम कळायण बरसा दीनी
रिळमिळ फूलां मांय पून महकार उडावै
मीठो भोजन जीम जियां मंगतो गुण गावै
कुरै कळायण लोर झिलोरां बादळ झुरता
मुड़ता टीबा मांय भोम-सूं बातां करता
धनख-बाण नभ ताण बाळकां हरख बधावै
पळकै-खळकै खाळ बीज दिनरैण बणावै
तावड़-छायां तोड़ जोड़ झट जाळ बणावै।
धरम-बै’न धर बणा बीज गै’णा पै’रावै॥89॥
मानी मांटी मोटरां सायकलां सोखीन।
तांगां, बैली, बग्गियां, भल मेळां-रा सीन॥90॥
सहर बीच सूराण कळायण भरयो अनोखो
‘सावण बीकानेर’ हुयो मन भावण चोखो
सिवबाड़ी सरवरां मंडै नित नूंवा मेळा
जळ तिरणै तळावां तेरु मोद झिलोरां झूलवै।
जोड-जंगळां, बाग़-बगेचां, फूल रंगीला फूलवै॥91॥
नारयां देखण जाय मगरिया सिव-बाड़यां-रा
मारग मावै नांय थाट थट रथ-गाड्यांरा
गूंजै जै-जै कार सुवाणी जै सिव बाबा
माल-मिठायां, फूल, चढ़ावै भर-भर छाबा
गुर पोकरणां गोठ घुटावै, भांग छणावै दूधिया।
झीणो-झीणो रंग जमायां न्हावण नाडां कूदिया॥92॥
पहर खड़ी सै खेजड़ी कुदरत-रा सिंणगार।
निरखण नूंवां नोखला बेलां हंदा हार॥93॥
खाळां लूमी लांपड़ी, खेतां मचियो घास।
बेल, बूंट, उळझ्या अजब, घास तणी घणतास॥94॥
बहुवां, बेटां, बूढळां कसिया सार-संभाळ।
लुळिया मन आणंद-सूं, धान रिया निरवाळ॥95॥
धान निनाण निकाळतां देत टींडस्यां बेल।
सिंझ्या सीझै सांतरां तीवण तड़कै तेल॥96॥
जामन जितरी टींडस्यां आमन-रै अुणियार।
काची-काची ‘घी’ जिसी सागां हंदो सार॥97॥
अळसायी सी बेलड़यां तिसवारी-रा फूल।
चिणमिणियां चींया लगै, फळै फाळ, फळ-मूळ॥98॥
खेत निनाणत ना लगी किरसाणां-रै ताळ।
‘भादूड़ै परवा चली’, वरसा लायी बाळ॥99॥
घास काट कूड़ी दिवी पसुवां हेत समान।
फटकारै-सूं पनपग्यो खेतां अूभो धान॥100॥
कदेक बाजै ‘सूरियो’ कदेक ‘पिछवा’ बाय।
कदे कळायण आपरा ‘नेक-चार’ कर ज्याय॥101॥
काग, कनइयां, बुटबड़ां, चिड़ी, कमेड़ी, डार।
मुड़-मुड़ मन ठंडो करै अुड-अुड हेड़ अुडार॥102॥
गेरी, पींचा, गोलिया, रमता खीचड़ खाय।
सिकरो सामो आंवतां झाड़यां घर घुस ज्याय॥103॥
भींग्यां, माख्यां, भूंडियां, किरड़ा रंग कीयां।
गोगातुरी, गिलारियां, नानड़ियां जीयां॥104॥
रेती रावड़ियां जिसा अणंत अूपन्या जीव।
सिणियां फूलां भिणभिणै मिणमिणियां हुल हीव॥105॥
टीटणिंयां, टिरड़ांटियां, बांडी, विच्छू होय।
गोहीरा, गुर्राइया, गजब कुमारा गोय॥106॥
मिंदर सिरसी जंगळां झींगुर अळग अलाप।
पावण पूजा बैण-रो जपै सलूणो जाप॥107॥
आभै पर बादळ थयां झणक अचूकी जाण।
सूरज अूगण –आथवण किरसाणां सैनाण॥108॥
चरचरियां चर-चर करै पूजा-री वेळा।
जंगळ-मंगळ आरती भली भजन रेळा॥109॥
बाछळ पसुवां-रो बडो अेक साथ छिब साज।
म्यां-म्यां भ्यां-भ्यां खेल सो गाजां-बाजां बाज॥110॥
सिंझ्या आवै साथ भैंस, अेवड़, गउ सारी
मारग मावै नांय बिछड़ियां मेळो भारी
डयांकै बाछा गांव उरणियां उछळै राजी
थाररियांळी टाल टोकरी सिंधण बाजी
बंसी, अलगूंजा, चरचरयां, झालर, जींझ, नगार है।
मन भावै देखत बणै सुर आथण-छटा अपार है॥111॥
आयो गोगो पीर, खीर-नै खड़ी धिराणी
जोवै भैंस्यां बाट, भैंस जा बैठी पाणी
ग्वाळो मस्त फकीर बजावै बंसी बंसी प्यारी
भूल धिराणी गयी बात मतळब-री सारी
बछड़ा, कटड़ा, फिर-घिर चरै, लीलो खावै रोज है।
बे-फिक्री मुरधरा बणायी, करी कळायण मौज है॥112॥
पंछी जोड़ पंचायती कर पावस-सूं प्रीत।
वाला बैण उचारवै ज्यूं सु-मधुर संगीत॥113॥
भल फूली पहपावळी, आवै हिरण अणंत।
भाजै खस-खस खाज कर तिलिया तोड़ तुरंत॥114॥
गोडै सूणी बाजरी, थाळी मधरा मोठ।
आय कळायण! खेतड़ां करज्या गै’री गोठ॥115॥
फूलां लारै फळ झलै कंवळां ज्यूं कोमळ्ळ।
चांदो मीठा कर रियो चांदणियां निरमळ्ळ॥116॥
बेलां बधाती रात-दिन मूंगां, मोठां टोप।
बग्गर झलियो ग्वार-में, खेतां आछी ओप॥117॥
मोठां कंवळ कुंहारिया बेलां फूल ललाम।
सिट्टां कूंकूं सोवणी रोही राजत राम॥118॥
खेत-खेत भरणा रया बांगर बाजर बूंट।
मोठ मरोड़ा दे रया, चिड़ियां करती लूंट॥119॥
संतोला सी काकड़ी, सरबत भरया मतीर।
सीकंटै-री सिट्टियां मूंढां भरणी खीर॥120॥
खपरी सोन कचोळियां बरमोळा सा बीज।
मिसरी भरी मतीरियां खुद मालक-री रीज॥121॥
कठै धणी-धण बैस करै मीठी मनवारां
खीर-काकड़ी चीर ‘नणद-वीरै’रा न्योरा
मिल घण परवारी कठै कातिसरो करता
लाल कसूंब मतीर रसीला झरता झरता
टाबर गरब लगाय गात-में बुगतरियां-री बांय-में।
गिर खावै, भाज्या फिरै है बाळक छूछी छांय-में॥122॥
सांवळ! भळ संवळो भयो रूप सांवळो धार।
अंवळो अब होयी मते मुरधर-रा आधार!॥123॥
फाको, टीडी, फिड़कला, करता! कीज्यो नांय।
काठो कीज्यो कातरो, करज्यो समौ सुवाय॥124॥
झूंपां खेत झुकाय ऊजळै, धोरै अूंचै
ढोल ढामक्यां बैठ बजावै डमडम डूंचै
भरी खनै ही कूंड पालरै जळ-री प्यारी
सगळी गयी थकाण भोग अिसड़ा सुख भारी
लूण मिरच लीरयां लगावै छोल-छोल कर काकड़यां।
तेरी मया कळायण माता! आपस बांटै फांकड़यां॥125॥
झिरमिर झीणी बूंद ठिवै जल सूं छीलरिया
बेळां रूड़ा रीट मेह-सूं सारा किरिया
सोरम ले-ले खाय डूंकती लूंकां डोलै
मण-पट्ठा मतीर खाय मेवा ज्यूं बोलै
डोरम-डोर मतीरा मिलै ‘हूती-हू’ गादड़ करै।
तेरी किरपा-सूं कळायण! ‘आज गधी ग्यारस करै’॥126॥
गया कबूतर काग, करण केकीड़ा केका
पंछी पूग्या खेत, गांव-में अेका-बेका
लकां-चेकां भाख भाख फाट्यै-री बेळां
हरखत करत कलोळ रोळ परभाती रेळा
गांव छोडग्या गंडकड़ा भी गादड़ियां-री होड सूं।
खावै मधुर मतीरिया जा काकड़िया भी कोड-सूं॥127॥
जंगळ-रा सै जानवर रातां खेतां आय।
सेह, सूरड़ा, स्याळिया खड़ा मतीरा खाय॥128॥
सहरां भागी लोग कदे क्यूं रैवै दोरा
होडा-होडी होड चावता वरसा कोरा
धोरां तक जांवता कोड मन रोही आवण
आया सेठ पकाय खाय बूवा घर जावण
आया सेठ बंगाल-सूं चौमासो चित भाइयो।
खेतां हेत समेता मीतां रोह्यां रंग जमाइयो॥129॥
मोढै अूंच मतीर काकड़यां-रो भर कोछो
सिट्टा तोड़ कळाय ग्वार-फळियां भर गोछो
सिंझ्या डेरै आय बैठ सुख साग बणावै
काचरिया कइ छोल मुठेड़ी मांय मिलावै
चूर-चूर मिसोड़ो रोटी जिनवां जीमै साथ-में।
फोड़ मतीर, चीर काकड़यां हंसता लेवै हाथ में॥130॥
नारयां निरखै खेत हेत हेरै हरियाळी
बाजार ‘बरबर’ बोल बुलावै तिल दे ताळी
हेलां हालै पान, पून मिस पल्ला खींचै
आणंद बधै अपार, आभ जद आंख्यां मीचै
हाली सीळी हवा सांतरी झीणी छांटां ओसरै।
करसां खानी जोय खेतड़ा मोद मना अभिनय करै॥131॥
खेतां चाल्या बूढ़ळा जूनी चेत रुवाड़।
लारैं टाबरियां लिया कर लसकर-रो लाड॥132॥
खेतां खेलै रेत हजारी बाळ हठीला
मोती-दाणा देख तोड़ सिट्टा स्वादीला
किलकत मोरण चाब कूदता आय कबड्डी
धसकावण धोराह लुढ़कता लुढ़कै लुड्डी
सिंझ्या चमकै चांनणां जद बाळक बोलै हरख-सूं।
आज दियाळी खेतां धुकै पै’चाणी है परख-सूं॥133॥
अिण ही दीनां अनेक तीज-त्यौहारां जोड़ी
राखी-पून्यूं परब, जलम-आठ्यूं मोटोड़ी
गोगा, ग्यारस, स्राध, नौरतां-री छिब न्यारी
दसरावै देखंत भगवती पूजण भारी
अेक कळायण-रै आवियां उछब अनेकूं आविया।
बणा-ठणा आणंद घणेरा नित-नित नूंवां लाविया॥134॥