इण माटी रा पूत निराळा, जलमै कांटा भूरटड़ी।
ठौड़-ठौड़ पर राज कियौ है, किला बणाया टेकड़ली॥
सूरां खाण्डौ अळकै पळकै, ज्यूं आभै मै वीजड़ली।
ललकारां सूं धरती धूजै, दुसमी भींचैं आंखड़ली॥
ठौड़-ठौड़ पर घाव दिखै है, सूरा मुंडै हांसड़ली।
रांणी ऊभी लेप लगावै, घस-घस नीमा पत्तड़ली॥
रेकारौ है गाळ बरोबर घीव पड़यौ ज्यूं आगड़ली।
राती आंख्यां उठै पलीता, भोवां रळगी मूंछड़ली॥
घोड़लिया असवारां चढिया, ऊंची कांन कनोतड़ली।
ऊंची डूंगरयां किला जीतै, भालौ लीयां हाथड़ली॥