सांसर घर मै भरया दिखै है, दूध मोकळौ गांवड़ली।

बिना जिनावर जीणौ दौरौ, बाळू धोरा धरतड़ली॥

भाख फाटतां कूकड़ बोलै, झाड़ू देवै बींदणली।

दिनड़ौ निकळ्यां डोकर बोलै, झट-पट छोडौ मांचड़ली॥

ऊंचौ सिकरौ खाय गुळाच्यां, दै झपटारा पांखड़ली।

भोळौ कबूतर पंजा फांसै, मांस जीमलै चांचड़ली॥

कोचरड़ी रूखां मै लुकजा, बागल चिपजा खेजड़ली।

दिन मै सूता नींदां लेवै, उधम मचावै रातड़ली॥

कागडोड चिलखां सूं न्यारा, काळी लांबी पांखड़ली।

तीतर मोडी खेतां बोलै, कबरी-कबरी पांखड़ली॥

स्रोत
  • पोथी : मूंडै बोले रेतड़ली ,
  • सिरजक : सरदारअली परिहार ,
  • प्रकाशक : परिहार प्रकाशन ,
  • संस्करण : प्रथम