आदिनाथ रा भगत दिखै है, जैन धरम री बातड़ली।
मूण्डै आगै पाटी बांधै, होट दिखै नीं दांतड़ली॥
भरी जवानी साधू बणजा, मोह करै नीं मावड़ली।
पूठा मुड़ घर गांव न देखे, करै तपस्या धाकड़ली॥
गांवां बीचां साधू दीसै, भगतां मूंडै हांसड़ली।
भगवन म्हारै घरां पधारौ, जोड़यां ऊभा हाथड़ली॥
पगां उभाणा दिखै जावता, पूगै दूजी गांवड़ली।
जीव बचावण खातिर भाई, भूल्या पीड़ा कांटड़ली॥
जीव जिनावर धकौ न देवै, मरै न कोड़ी रेतड़ली।
अहिंसा री ओ रूप साथिड़ा, दिखें न दूजी घरतड़ली॥