चोपई
तिणि गढि राज करइ गहिलोत्र, रतनसेन राजा जस जोत्र।
प्रबल पराक्रम पूर प्रताप, पेसी न सकइ जस घटि पाप॥
अवनि घणी जग अविचल आण, भालि तपइ जसु बारइ भांण।
वेरी कंद तणु कुद्दाल, रण रसीउ नइ अति रंढाल॥
पटराणी तसु परभावती, रूपइं रंभा, सीलइं सती।
इंद्र तणइ इंद्राणी जिसी, तेहनइ ते पटराणी तिसी॥
अवर अनेक अछइं तसु नारि, अपछर रंभ तणइ अणुहारी।
पिण मनि मांनी परभावती, तिणि पिणि मोहि लीयो निज पती॥
सतर भेद भोजन रसवती, केलवि जांणइ ते गुणवती।
राजा तिणि रीझवीयो घणुं, किसुं घणुं, हिव ते हुं भणु॥
भोजन भगति करइ ते नारि, तु ते भूप करइ आहार।
अवर तणउ कीधउ अनपाक, रतनसेन नइं लागइ खाक॥
माहोमाहि घणु मनि मोह, सहि न सकइ खिण एक विछोह।
वीरभांण तसु सुसुत अतिसुर, प्रतपइ तेज तणु घटिपूर॥
चतुरंग सेन संपूरण साथ, नीतइं राज करइ नरनाथ।
अरि सगळा नांख्या ऊछेद, खिति धरतां तसु नावइ खेद॥
सबल सूर साचा ससनेह, छल न करइं नवि दाखइं छेह।
सुरपति दियइ जिणां री साखि, इसा सुभट सुघरी इक लाख॥
हय गय पायक रथनी संख, करे न सक्कइ को आकंख।
इण परि परिगह तणइ पडूरि, रतनसेन राजा भरपूरि॥