चोपई

मुंछ मरोड़ी ऊभु थयउ, गरव ग्रही घर बाहरि गयु।

रतनसेन राजा एकलु, साथि खवास करी इक भलु॥

सबल खजीनु साथई लेइ, असि चडि चाल्या छांना बेइ।

कोइ जाणइ विरतंत, खितिपति मनि अति लागी खंति॥

पदमिणि परणी आवुं घरे, नहिं तरि रहिस्युं गिरि कंदरे।

विण पदमिणि नवि पोढुं सेज, विण पदमिणि हंसु हित हेज॥

एम प्रतिज्ञा कीधी पूर, राजा चालिउ साहस सूर।

वीस त्रीस जोअण चालीया, तव ते वेही इम बोलीया॥

ऊषर खेत्र लागइ बीज, विण झगड़ा थपाइ धीज।

विण बादल नवि वरसइ मेह, एक पखु नवि हुइ सनेह॥

गाम नही तु केही सीम, अगनि माहि नवि जांमइ हीम।

सेवक जंपइ सांमी सुणउ, प्रगट प्रकासु मुझ मंत्रणु॥

मरम पखे किम लहीइ माग, ताण्या विण किम लाभइ ताग।

राजा जंपइ पदमिणि भणी, मइं अवनि उलंघी घणी॥

पदमिणि तणा पठंगा जिहां, ठावी ठोड़ वतावु तिहां।

सेवक जंपइ सांमी सुणउ, खरच वरच साथइ छइ घणु॥

पिणि नवि जाणी जां लगि पंथ, तां लगि सगलु गोरख कंथ।

बइठउ भूप जई तरू तलइ, पंथी आविउ इक तेतलइ॥

भूख त्रिसि भेदाणु घणुं, पोतुं वीतुं अमलह तणुं।

पंथ तणु वलि पूरू खेद, घटि सगलइ हूउ परसेद॥

अटवी माहि घणु आकलइ, पिणि नवि कोई मांणस मिलइ।

तिणि ते दीठउ भूपति जिसइ, पगतलि आवी पडीयो तिसइ॥

राइ किआ सीतल उपचार, वाली चेतन पायुं वारि।

अमल अमोलिक दैई करी, भांजी भूख गई नीसरी॥

सावधांन हूउ पंथी तेह, कर जोड़ी जंपइ ससनेह।

तइं मुझ कीधु अति उपगार, जनम दीउ मुझ बीजी वार॥

मुझ-सरिखु को कहयो काम, हुं सेवक नइ तुं मुझ सांमि।

वलतुं राइ भणइ सविसेस, तइं दीठा बहु देस विदेस॥

पुहवि फिरंतइ तइं पदमिणी, काई नारि कठे सुणी।

तव ते जंपइ सुण मुझ धणी, संघल दीपि घणी पदमिणी॥

दक्षिण दिसि छइ शंघल दीप, सगलां दीपां माहि प्रदीप।

आडउ आवइ उदधि अथाह, तिणि तसु कोइ लाभइ माह॥

स्रोत
  • पोथी : गोरा बादल पदमिणी चउपई ,
  • सिरजक : हेमरतन सूरि ,
  • संपादक : मुनि जिनविजय ,
  • प्रकाशक : राजस्थान राज्य प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर (राज.) ,
  • संस्करण : द्वितीय
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