चोपई
कुसल अछइ कइ काई बात, मत सुति मारिउ होइ तात।
एहवी बात करइं ते जिसइ, रतनसेन नृप आविउ तिसइ॥
च्यारि-सहस हयवर हींसता, बि-सहस गयवर अति गाजता।
बि-सहस बिहुं दिसे पालंखी, त्यां माहे तसु बेठी सखी॥
विचि पालंखी पदमिणी तणी, चिहुं दिसि भमर रह्या रुणझणी।
ऊपरि कंचण कलस अनेक, एक थकी वलि अधकु एक॥
सुभट तणा नवि लाभइ पार, गज गरजारव हय हीसार।
पंच शबद वाजइं वाजित्र, जे सुणतां सवि नासइ शत्र॥
इम तसु साथइं सबली सेण, गयणंगणि बहु ऊडई रेण।
आव्या चित्रकोट तलहटी, हुइ कोलाहल अति कलहटी॥
वीरभांण संकाणु माहि, सुभट सहू धाया असि साहि।
परदल आविउं जांणी करी, हाटे हलफल हूई खरी॥
ततरइ आविउ नृपनु दूत, कागल लेई माहि पहूत।
वीरभांण वाची सहु वात, धन्य दिवस मुझ आविउ तात॥
विनयवंत सांम्हउ दोडीउ, कपट तणु पड़दु छोडीउ।
सुभट सहू धाया ससनेह, जोअण आया लोक अछेह॥
सकल लोक जई लागा पाइ, कुसल खेम पूछइ नरराइ।
रतनसेन चडीओ गज गाहि, महा महोछवि आविउ माहि॥
हूउ पइसारू पूगी रली, ठोडि ठोडि गूड़ी ऊछली।
पदमिणि नारी परणी तणु, जय जयकार हूउ जस घणु॥
महल मनोहर दीधु माहि, तिणि ते पदमिणि करइ उछाह।
बि-सहस पासि रहइं छोकरी, चंचल चपल रूप सुंदरी॥