चोपई

इणि परि पदमिणिना अहिनांण, निसुणी हरख धरइ सुलितांण।

अम्ह घरि हरम परीक्षा करु, पदमिणी हुइ ते जूदी धरु॥

व्यास भणइ संभलि सुलितांण, तुं मुझ साहिब सुगुण सुजांण।

हुं तुझ हरम निरख्खुं नहीं, विण निरख्या क्युं परखुं सही॥

कहसि वात निहालण तणी, तव ते जंपइ डिल्ली-धणी।

साहि कहइ संभलि हो व्यास, मणिमय एक करु आवास॥

तिण माहे तेहना प्रतिबिंब, निरखी परख करु अविलंब।

सामगरी सहु भेली करी, राघव माहे आणिऊ घरी॥

मणिमय मंडप माहे व्यास, परखइ हरस तणु परगास।

हस्तिणि चित्रिणि नइ सुंखिणी, निरखी नारि, का पदमिणी॥

स्रोत
  • पोथी : गोरा बादल पदमिणी चउपई ,
  • सिरजक : हेमरतन सूरि ,
  • संपादक : मुनि जिनविजय ,
  • प्रकाशक : राजस्थान राज्य प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर (राज.) ,
  • संस्करण : तृतीय
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