स्मसान सेवी डरती सुणलै, जाम्भोजी री बातड़ली।

बाळक मूंडै ज्ञान सुणयां सूं, ऊभौ जोड़ै हाथड़ली॥

जम्भोजी बकरयां नै कहवै, पांणी पीवौ नाडड़ली।

बकरा सगळा बैठ्या दीसै, दूदै देखी आंखड़ली॥

मेड़तियै रो राज मांगतौ, दूदै जोड़ी हाथड़ली।

लकड़ी री तलवार देवता, भगवन सूंपी जीतड़ली॥

काळ पड़यां सूं मरै मानखी, भगवन राखे लाजड़ली।

घरां गांव मै हरख दिखै है, चरलै डांगर घासड़ली॥

हासिम -कासिम कैद पड़या है, संतां सुणली बातड़ली।

बादस्या नै भेज्यौ संदेसौ, चेला आग्या गांवड़ली॥

स्रोत
  • पोथी : मूंडै बोले रेतड़ली ,
  • सिरजक : सरदारअली परिहार ,
  • प्रकाशक : परिहार प्रकाशन ,
  • संस्करण : प्रथम