ब्यांव रचाय'र आया जांनी, गांव घरां मै हरखड़ली।

बींद-बींदणी कांकड़ बैठ्या, हेटै गादी जाजमड़ी॥

घरा-घरां सूं निरखण आयी, गांव घरां री बहवड़ली।

घूंघट सूं घूंघटियो रळियौ, देखै आंख्यां नाकड़ली॥

ब्यांवां रीतां पूरी होगी, घरां पूगजा बींदणली।

आरतियै री थाळ सजायां, फळसै ऊभी मावड़ली॥

बनड़ौ बनड़ी घर मै बड़तां, फळसौ रोके बैनड़ली।

नेक-चाक बाबलजी देवै, मावड़ मूंडै हांसड़ली॥

गठजोड़ै सूं बड़ता घर में, बींद बिखैरै थाळकड़ी।

इखरया-बिखरया बरतन दीसै, भेळा करले लाडड़ली॥

स्रोत
  • पोथी : मूंडै बोले रेतड़ली ,
  • सिरजक : सरदारअली परिहार ,
  • प्रकाशक : परिहार प्रकाशन ,
  • संस्करण : प्रथम