होळी माथै सुगन मनावै, स्सै री देखे आंखड़ली।

झाळां लपटां सीधी जायां, धान भरेली धरतड़ली॥

फागण महिणै गिंदड़ घालै, ढोल वाजता धाकड़ली।

हाथ डांडिया लड़ता दीसे, मधरी लागे तानड़ली॥

गबरू रळ-मिळ गावै धमाळां, मीठी बाजै चंगड़ली।

फागण महिणै गीत सुहावै, रस भीजी है कांमणली॥

भांत-भांत रा सांग रचाया, नाचे कूदै धाकड़ली।

मरवण ऊभी ढोलौ निरखै, पलकां थाम्या आंखड़ली॥

सांझ पड़्यां सूं भेळा होजा, चंग बजावै हाथड़ली।

मधरा-मधरा गाता दीसै, ऊभा ऊपर टीबड़ली॥

स्रोत
  • पोथी : मूंडै बोले रेतड़ली ,
  • सिरजक : सरदारअली परिहार ,
  • प्रकाशक : परिहार प्रकाशन ,
  • संस्करण : प्रथम