चोपई

भूप भणइ संभलि पतिसाह, भलइ पधार्‌या आलिमसाह।

वलि तेडावु जांण जिके, पिण लघु बोल बोलु बके॥

परिघल पांणी परिघल धांन, परिघल घोल घणा पकवांन।

जीमु भोजन भावइ जिके, पिण लघु बोल बोलु बके॥

बोलि बोलि बे हूआ खुसी, हाथे ताली दीधी हसी।

माहोमाहि हूउ संतोष, टलीया सगला मनना दोष॥

रतनसेन हिव निज घर घणी, भगति करावइ भोजन तणी।

पदमिणि नारि कहइ प्रतइ जई कहइ, आलिम सुं हिव जिम रस रहइ॥

तिण परि भोजन भगतइ करु, जिम आलिम मनि हरषइ खरु।

पदमिणि नारि कहइ प्री सुणु, निज करि करिसु हुं प्रीसणु॥

षटरस सरस करूं रसवती, प्रीसेसी दासी गुणवती।

सिणगारु सगली छोकरी, खांति अछइ जु तुम्ह मनि खरी॥

बि सहस दासी रूपनिधांन, पदमिणि पासि रहइ सुविधांन।

रूप अनोपम रंभा जिसी, काम तणी सेना हुइ तिसी॥

आसण बेसण सगला तेह, करसी कांम सहू ससनेह।

सगली साकति करि साबती, मांहि तेडाविउ डिल्लीपती॥

परिघल परठा दीसइ घणा, जाणि विमान अछइ सुरतणा।

ठोडि ठोडि दीसइं पूतली, घालइ वाउ चिहुं दिसि वली॥

अनुपम रतनजडित आवास, अगर कपूर अनोपम वास।

चिहुं दिसि दीसइं चित्र अनेक, मंडप महल महा सुविवेक॥

तिहां आवी बेठो पतिसाह, मन महि आवइ अधिक उछाह।

पदमिणि पांहइं अधिक पडूर, दासी आवि दिखाडइ नूर॥

स्रोत
  • पोथी : गोरा बादल पदमिणी चउपई ,
  • सिरजक : हेमरतन सूरि ,
  • संपादक : मुनि जिनविजय ,
  • प्रकाशक : राजस्थान राज्य प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर (राज.) ,
  • संस्करण : तृतीय
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