कोइक केवै म्हूं करूं, कोइक केवै राम।

न्यारा न्यारा नी रहै, म्हूं नै म्हारौ राम॥

यूं अविनाशी ऊपरै, दीखै जगत तमाम।

टेशण रा दिवा परै, ज्यूं टेशण रो नाम॥

पसररियो यो पवन शूं, अधिक धुंवो अंधार।

निकळ सकै तो झट निकळ, बळता घर शूं बार॥

जीं दन आतम ओळख्यो, अळगो लगो अखूट।

बंधन रा भी बळगिया, वी दन बंधन टूट॥

ज्ञान उडंत लगाव नै, मंत्री मोह निपात।

योग अनोखी चाल शूं, मन नै करदै मात॥

दन आंथ्यौ थाका बळद, पियौ क्यारौ एक।

वच में पाणी फुटगयौ, हिया फुट झट देख॥

विंजन ज्यूं यो विश्व है, सुर ज्यूं ईश्वर जाण।

वणी वना यो नी रहै, इण विन वठै हाण॥

जग में जोगी दोय, जाहिर है तन मन तणा।

मन जोगी चुप होय, तन जोगी बोलै घणा॥

स्रोत
  • पोथी : चतुर चिंतामणि ,
  • सिरजक : चतुर सिंह ,
  • संपादक : मोतीलाल मेनारिया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रन्थागार, जोधपुर ,
  • संस्करण : द्वितीय