गुरु है चार प्रकार के,अपने अपने अंग।
गुरु पारस दीपक गुरु, मलयागिरी गुरु भृंग॥
चरणदास समरथ गुरु, सर्व अंग तेहि माहिं।
जेसै कूं तैसा मिलै, रीता छाडै नाहिं॥