दोहा

असल हेरव इरान के, रूप स्याम ऐराक।

 विवह चलाक अवाक अस, पैर ताक तुप चाक॥

                                     भूजंगप्रायत                                        

अए चंचलं अप अपं चलथं। कृतं पंडवं वेव साकत कथं॥
सुने साहनी वत पंडव तामं। छंडे झूल बंधान मंडै लगामं॥
सुधारे दसमाल सा रेहसमं। प्रभा मुख्यलं दर्पनं सीप समं॥
अयं भत ओपंत अैराक थानं। परं ब्रह्म क्रतेव चित्रेव पानं॥
कित दिब रूपं अनूप प्रकारे। सुयं तंत पंचै क संचै सुधारे॥
प्रथी तेज धीरं समीरं गवनं। धुवं मन तासीर तकं अवनं॥
समं नाल तालं पयालं तरछी। दुति अभ चंदं समंदं क मछी॥
कुसम कली अंजली नीर मुखं। मुसालं चखं भाल तेजाल रुखं॥
महातेज जाजुल सातुल मनं। विरंचेव रंचेव संचे पवनं॥
कही उपमा ताहि साचाहि तके। करं नट गोलं कलोलं उचके॥
दिवालं दुरंगे वसंगे विदीरं। उरं पार फूटे मनु तोप तीरं॥

स्रोत
  • पोथी : रूपग राजसमंद (कुंभकरण सांदू) ,
  • सिरजक : कुंभकरण सांदू ,
  • संपादक : नारायण सिंह सांदू ,
  • प्रकाशक : महाराजा मानसिंह पुस्तक प्रकाश शोध-केन्द्र, दुर्ग, जोधपुर। ,
  • संस्करण : प्रथम