बादल देख मारै छलांगां, कुदै-नाचै टोगड़ली।
बीजळ खिंवतां देख गावड़ी, दौड़ी पूगै रोहिड़ली॥
चौमासै मै गायां चरलै, जोड़-बीड़ मै घासड़ली।
घरा-घरां सूं रिपिया बांध्या, गोरी लेवै रोकड़ली॥
डांगर चरता रळ-मिळ जावै, पूगै दूजी गांवड़ली।
दागां सूं सांसरिया सोधै, सींगां बांधै जेवड़ली॥
घूघरियां री माळा पहरयां, नाड़ हलावै घैनड़ली।
बाखळ ऊभा रमतां घालै, दोनूं बाछौ-बाछड़ली॥
पगां नैजणौ गोडां गूंणियौ, दूधौ दुवै मावड़ली।
भरया कटोरा पीता दीसै, घर-घर टाबर टिंगरड़ली॥