सिव- पारवती दोनूं ऊभा, गवरल ईसर गांवड़ली।

घर-घर पूजा पाठ हुवे है, करै उजाणौ बहवड़ली॥

घरा-घरां सूं छोरयां आई, ऊम्यां दीसै टीबड़ली।

होळी घेरयां रळ-मिळ बैठै, मधरी गाती गीतड़ली॥

बीकाणै रै ढढां चौक मै, टाबर साथै गोरड़ली।

हीरा मोती अंग-अंग चमकै, गैंणौ पहरयौ धाकड़ली॥

सोळै दिन री गोरी पूजा, ईसर आया साथड़ली।

गीत गावती टुरी लुगायां विदा करणनै गोरड़ली॥

सिणली रै तळाव गिन्दोली, पाळां ऊभी साथड़ली।

भेळी होयां दिखै तिजणियां, साथै राखै बैनड़ली॥

स्रोत
  • पोथी : मूंडै बोले रेतड़ली ,
  • सिरजक : सरदारअली परिहार ,
  • प्रकाशक : परिहार प्रकाशन ,
  • संस्करण : प्रथम