काळा डोरा बांध्यां सूत्या, पींगै टावर गांवड़ली।

मावड़ बैठी हींडा देवै, गोगौ लेवे नींदड़ली॥

मोत्यां लालां जड़ी इंढांणी, माथे राखी गोरड़ली।

पाणी घड़िया लाती दीसै घर-घर कांमण गांवड़ली॥

ब्यांव अेढै गांव डावड़क्यां, पहरे घाघर कुड़तड़ली।

माथै ऊपर केस गूंथियां, टिरती दीसै चोटड़ली॥

नई अंगरखी पहरय्यां ऊभौ, माथै बांधी पागड़ली।

गांव आंतरा मिलबा चाल्यौ, हाथां लीयां डांगड़ली॥

बुढा-बडेरां ऊंची धोती, गबरू नीची अेडड़ली।

बुढयां- बडेरयां धाबळ पहरे, लेंगी पहरे बींदणली॥

अंतर फवलिया कांनां टांग्या, कांधे लीनी पोटड़ली।

सासरै ने चाल्या भंवरजी, चड़ चूं बोले मोजड़ली॥

स्रोत
  • पोथी : मूंडै बोले रेतड़ली ,
  • सिरजक : सरदारअली परिहार ,
  • प्रकाशक : परिहार प्रकाशन ,
  • संस्करण : प्रथम