मिनख भरै मन मोद, जिनावर जुड़ै उगाळी
पंछी उडता फिरै, करै किरसाण रूखाळी
खेतां धान अपार कळायाण देखै ऊभो
जांझरकै ही आय करै तिसवारी सूबो
कदे धूआं-धंवर ल्यावै, कदेक गळस जमीन-सूं।
तेह दे-दे मे’ सो बरसै, सील करै दिन तीन सूं॥1॥
रात रतन परभात-रा गयो ज जंवरी गेर।
तिणतिण गिणगिण कणकणां पग-पग बग्यो बखेर॥2॥
भाख फाटियां धान-में पळक्या मोती जोर।
धोरां धोर बिखेरग्यो रात भागतो चोर॥3॥
ऊमस-ओग-उबारणी! सीयाळै मत मार।
फसल फळी-फूली खड़ी, झड़ी लगा ना झार॥4॥
पाळण-पोसण मावड़ी! मुरधर राखण मै’र।
अक्र उनाळै लावज्यो ठंडी रूड़ी लै’र॥5॥
आज सिधावो, सी घणो, बेगी बावडज्यो।
ओग उनाळ उबारणै मुरधर-में आज्यो॥6॥
जड़-चेतन खुस देखिया, जायो सीत सुवाय।
कांठण दुखड़ा, काटणी चाली हिव हरखाय॥7॥
सूरज अूगण बेळ पड़ै झीणो सो पाळो
किलकारै किरसाण, डार खेतां-सूं टाळो
कूंजड़ल्यां करळाट अकासां जाय सुणावै
थाळी-पींपा बाज तान भोमी भरणावै
जाणै धरती-आभ आपस दोनूं हंस बातां करै।
दुन्नाळी चालै बंदूकां, केकीड़ा केका करै॥8॥
पींपाट्यां सी बाजती पंछ्यां तीखी तान।
सरण गपोक गोफिया छूट हिलावत जान॥9॥
बूंटां सिट्टी सूक हो रयी कड़बी धोळी
खेस-खअीसां साम किसाणां मांडी झोळी
रात-दीनां कर तोड़ ठोड़ सिर सिट्टया्ं नाखी
पखवाड़ै कर लयी अेकरगी भेळी आखी
बोरां, ढोरां-सूं ढो-ढो कर पूंजळियां दीनी घणी।
अैस कळायण-री क्रिपा-सूं बाजरड़ी बरसां तणी॥10॥
फळी लगी ज्यूं गूघरा, मोठ हुया है लाल।
धरणी पूरी धान-सूं आछो फळियो फाल॥11॥
सारी सिट्टी तोड़ ली, अबै उपाड़ै मोठ,
नेड़ी लागै नानरयां, भरसी कोठी-कोठ,
भरसी कोठी-कोठ, बोल-सूं बात बणावत
लीला होय’र लग्या टाबरां राम भणावत
रामअियै-री राग गूंजती भोमी भारी।
भोमी-में भर गयी कळायण रागां सारी॥12॥
निकळै लार मतीरिया आभैं खेत अनंत।
जियां अमावस रात-में तारा-गण चिलकंत॥13॥
झालां, जूलां, मांबियां ढोवण लाग्या मोठ।
हाथ पक्या, ढो-ढो थक्या, भेळा हुवै न मोठ॥14॥
कठैक काढै मोठ, कठै बाजरड़ी गा’वै
कठै पटीजै ग्वार, कठै अन-धन घर लावै
कठैक पालो कटै, बोरिया बाळक भाळै
कठैक ढिंगा मतीर फोड़ कर बीज निकाळै
कठैक कंदूडा लगावै, कोड करै तिल बाढ़ता।
कठैक सिल्लो करै छेकड़, कठै करायां मांडता॥15॥
गै’रो गूणो गा’य खरेळत खळिया जाझा
मधरी माद लगाय उपणै भर-भर छाजा
मोठ-फळ्यां-रो तांय जूंट बळदां-री चाढ़ी
मोठां लूंठो बो’ळ लाग्यो, माथै लिछमी मात है।
बूठ गयी कळायण काळी, सावड तूठत जात है॥16॥
बाय चलै ना बावळी, किण अिण-नै दी रोक।
‘जाण घड़ै-में घाल दी’, खळांज देवां धोक॥17॥
निकमा ऊभा जोविया जद नभ तकड़ो ताण।
पून चलायी प्रेम-री अवसर आय कळाण॥18॥
हरिया ओढ़े ओढ़णां ज्यूं गोरड़ियां गुट्ट।
राती बूंद्या बोरिया झाड़खियां झुरमुट्ट॥19॥
लूम-झूम मिल झाड़ता मीठा अिमरत बोर।
टाबर खावै खेलता बण झाड़खियां चोर॥20॥
घर-घर-में घी-रा जळै अणंद उडै अपार।
गोखां मोखां माळियां दिवालां जुड़ै कतार॥21॥
कोडां करता काम दियाळी आयी चोखी
गांवां, सहरां और खेत, ढाण्यां-में धोकी
पुळ-सूं लिछमी पूज गोरधन पूजा न्यारी
काचर बोर-चढ़ाय पीट छालै पर भारी
मुळक मिलां खुसी-री बेळां, राम-राम-रा रंग बंटै।
लीप्या-ढोळ्या घरां बीचै मीठा माल घुटै॥22॥
काकड़िया चिंथड़ा जिसा, मिजळै स्वाद मतीर।
झीणी सी ठारी ठारी पड़ै, सीळी हुयी समीर॥23॥
धान ढ़ोंवता ऊंट घर झरतै मद माथी।
दुग्गाळै गूंजत बगै मुरधरा-रा हाथी॥24॥
सरदी आयी ओपरी, पसु थाक्या डर सीत।
हाक्या-दाक्या रूंखड़ा, दुरबळियां को मीत?॥25॥
बिरछां दीनी कोड-सूं पान भरी डाळी।
पिछवा आयी पावणी, चंवर ढुळै डाळी॥26॥
डांगर डांफर मांय धूजता ऊभा आखा
ओटो देखै आय गांव गोरां-में राखां
झड़ झांखड़ के खाय, साल सेवण बे-नूरी
रोही कीयां जाय, काळजा काढै लूरी
घरां घणो ही घासड़ो है, सूको धणी चरावसी।
पाळो पड़ै पलीत जां-में पसु ना रोही जावसी॥27॥
धंवर ओसरी देख विरछ कळप्या बेचारा
डरतां नाख्या पान, सूकिया सांसै सारा
माणस सूता मांय ओढ़िया गाभा भारी
छानड़ियां जा बड़ी गाय-भैंसड़ल्यां सारी
चेतै करै लारली वरसा डरती जीया जूण सा।
सावण जियां झड़ी लगी तो जतन जिवांला कूण-सा॥28॥
परबळ पाळो पड़ रियो, तीखो ज्यूं तेजाब।
रूंखां नीचै पानड़ा नाख्या ज्यूं भर छाब॥29॥
दाझै दावो दुसट बन बण दावानळ देत।
रोंवतड़ा सा रूंखड़ा, खीजतड़ा सा खेत॥30॥
हरया न फोगड़-खेझड़ा, काळा रिया दिखाय।
जंगळ हुयो अधावणो, सरदी सयी न जाय॥31॥
फोही बोलै रात-री रोही जाड मांय।
धूआं-धंवर प्रभात-री गादड़िया गरळाय॥32॥
चाली डांफर डाकणी, क्रोध करे कड़की।
न्हारी ज्यूं नख मारती हांडतड़ी हिड़की॥33॥
बाळी डांफर डाळियां, बाळ्या बिरछ सरूप।
बन बदरंग बणावियो, कोझो कियो करूप॥34॥
ठर ठंडो ओलो हुयो, ठिणकै दोरो देस।
मेह-धणी लारै धरा कीनो बेवा बेस॥35॥
हरियां मूळां-सूं सदा, भरिया रहता धोर।
पाळै-सूं पीळा हुया जुड़ जाडै-रै जोर॥36॥
ज्यूं तन पर बसतर थयां सीस उघाड़े नार।
केळ झबरखा अध-बळ्या पेड़ां लूंग अपार॥37॥
आयो मी’नो पोह खालड़ी खावण-वाळो
टाबर जरड़ीज्याह खांस खुलखुलियां चालो
ओरी माता रोग चल्यो परबळ पाणींझर
बूढां फैलण लग्यो घणो गुजराती घर-घर
असर दिखावै आप-रो आ, पाळो मुरधर-में रमै।
‘रात हुयां के बात कै’णी’, पाणी पत्थर सो जमै॥38॥
चाम रूंगटा फाटग्या, झीणी पड़गी जोत।
सरदी सूं कुड़ थुड़-थुड़ै जाण मांगता मौत॥39॥
कौरव ज्यूं सी-काळ पड़ै पांडव-मुरधर पर
देवण दुक्ख अथाह झगड़ ‘भू’ लेवण जब्बर
द्रौप्त ज्यूं बणराय, दुसासन दुसटो दावो
नगन करण रण रोप पुराणो काढै कावो
चीर बधावण दुसट थकावण क्रीसन कीनी जीत है।
पान उगावण सीत भजावण मुरधर सूरज मीत है॥40॥
सूरज कींकर सवै बात कुदरत-री का’ली
पाळो पड़तो देख तेज ताप्यो ले लाली
करड़ी किरणां काढ किया पीछो पाळै-रो
भाज्या सारा रोग सोग कर सीयाळै-रो
दियो ओज कळाण भाण-नै, कासव-सुत गै’रो तप्यो।
नाख्यो जळ घणो, जिण कारण पोह बीत्यो पाळो खप्यो॥41॥
जळ-रा अबै फुंवारिया छोटा-छोटा जोर।
सावण ज्यूं नभ ना लुकै, पण है धूआं-धोर॥42॥
ना बीजळ, ना गाजणो, ना आंधी, ना लील।
छोटो रूप बणावियो, करै कळायण सील॥43॥
ज्यूं बाळक सूता रवै कांस मात मन मांय।
होळै-सै गाभो उठा करसी ऊपर छांय॥44॥
सोच कळायण मन अिसी जाण धंवर बरसाय।
बन आखो काळो हुयो, चालै होळी लाय॥45॥
जंगल सूको जोवियो, मुरझायोड़ा मूळ।
भाख फाटियां भेय गी धंवर धरा-री धूळ॥46॥
जाणो धंवर कळाण-नै मुरधर करै रुखाळ।
रातां भोम भिजोंवती बिना चलायां बाळ॥47॥
होळै-होळै हालती धंवरां रूप बणाय।
आखर अपनी बाण-सूं हरी करै बणराय॥48॥
रात्यूं रोही मांय ग्वाळिया रोळ रचावै
अेवड़ भैंस्या राख दूध दुह खीर पकावै
दूझंतड़ी गउ-भैंस जकां-रा ग्वाळा न्यारा
बछड़ा, कटड़ा, टोर, चरावै टाबर प्यारा
बकरयां भेड़ां सावड़ी जो छोरा छोरै रोज है।
टीबड़लां टाबर रमै जद जंगळ-मंगळ मौज है॥49॥
छींकै तबला पावरा ले लोटड़ियां चाव।
छूटा-मोटा छोकरा टाट चरावण जाव॥50॥
अूंचै धोरै आखरी खावण-नै गुलखीर।
आग अंगीठी आसरै बात बणावण वीर॥51॥
सिंझ्या डेरै आयकर अेवड़ बाड़ी बाड़।
‘बेलाळी का’ बैठता नींद झुकायां नाड़॥52॥
रोही में ग्वाळा रमै गांवां राजी लोग।
मुरधर माणस भोगता सगळा सुख-रा जोग॥53॥
करणी मौज अणंत सुखी किरसाणां जीणो
जीमण नूवों धान कूवै-रो पाणी पीणो
सियाळै रो खाण जाण ज्यो मधुरामृत है
पीळी रोटी पोय सकरड़ी राळ्यो घृत है
मिरियो डब्ब डबोय लेवै कढती दूध कढ़ावणी।
भैंस्यां-रै जाड़ै दही में चूरी रोटी खावणी॥54॥
होका पीवण हार हथायां करै अणोखी
बीती बातां नीत बतावै बूढ़ा चोखी
सिख्यां सूंअी देत नाख आछा ओखाणां
सिंझ्या धूंयां बैठ सीव में साजन स्याणां
राम, भरत, उण केकयी-री सीख सलूणी बातड़ी।
रवै बीरबल पातस्या-री बूढ़ां मुख ही ख्यातड़ी॥55॥
जी हरखा जी-जी करै, मितरां आछो मेळ।
मन भांवतड़ी मसखरयां गुण-सूं रेला-पेळ॥56॥
हुलसै आय हथाइयां चौकी धूंयां ओग।
हुयी कळायण-री किरपा, मौजां माणै लोग॥57॥
पो फाट्यां परभातियां सांत सुवाणी राग।
हरि-गुण ‘गुणगुण’ होरिया, माणस अूठै जाग॥58॥
गावै घट्टी पीसती नारयां गीत अमोल।
बूढ़ा भाखै भैरवी ‘लियो गोविंदो मोल’॥59॥
माघ महीनो काट राजी घर आवै
खेतां देवै धोक कळायण-रा गुण गावै
रंग लायो रुत-राज, भाजती छींका टोळी
जड़-चेतण ीचित चाव फागिजै फागण जोळी
धोळी-धोळी टीबड़ली किरसाणां मन भांवती।
लारै झांक लुगायां जोवै राजी घर-नै आंवती॥60॥
लूव बधाऊ निकळिया, भोमी ऊग भंपोड़।
रूंव-रूंव गरमी रमी, सरद दिया घर छोड़॥61॥
नांय सुवावै तावड़ो, ना मन भावै छांय।
आय अधावण बाजती ठंडी अळपत वाय॥62॥
फागण सागण बादळी तीतर पंखी रेख।
बरसण-री मन-में करी दूर कळायण देख॥63॥
बादळियां आभै मंडी, मुरधर खुस मन हेत।
जाण्यो वरसा बरस-सी, चोखो करसी चैत॥64॥
छूछ खजानै बादळी बरसण हुयी तयार।
पाणी बिन खाली खड़ी बण मुरधर दातार॥65॥
छोटी-छोटी काल-री आ बरसण सीखै।
‘कागा राखै काछड़ी उडतां-री दीखै’॥66॥
अेकड़-दोकड़ छांटड़ी टेर परे हो ज्याय।
बरसण-तरसण मेटसी कदे कळायण आय?॥67॥
भरसी भरणै-वाळियां खेत-खला घर-कोट।
आय कळायण बरस-सी पाणी पोटां-पोट॥68॥
होळी खेलै गै’रिया भर पिचकारयां नीर।
मिंतर मिलै रंग-मोद-सूं, अदभुत उडै अबीर॥69॥
रसिया चंग बजांवता धीमी भणै धमाळ।
‘रतनाळी-में सांवरै जादू दीना राळ’॥70॥
छोरां-धोरां जाय जंगळ में जेळ बणायी
होळी आयी जाण जवानां दड़ी मंगायी
मांड हड़दड़ो खेल भेळ-सूं बांटै भीरी
पांती कर पेणांह खेलणै लाग्या सीरी
हार घरां जावै नहीं है आगै पीदता हारता।
खेलत पोरां-पोर बीतै जीतै टोरा मारता॥71॥
आछी फागण रात ऊजाळी चमकै चोखी
गांव-गुवाड़ां बीच खेलता सगळा सोखी
गांव-गुवाड़ां बीच खेलता सगळा सोखी
किलकत कूदत केळ दौड़ता बाळक सारा
कन्यां गावै गीत पुराणा प्यारा-प्यारा
हरखत हाथां ले डफ रूड़ा रास रमण-री रीत-सी।
कण-कण में चोळ चांचरयो, रातां तान संगीत-सी॥72॥
मदवां मना उमंग, राग-रंग चंग बजावै
मो’णी रातां मांय सांतरा सांग बणावै
गावै घणी धमाळ डंडिया जोड़त डोलै
घींदड़ तणा घुमेर नगारा घैं-घैं बोलै
चास चूरमा उडै मीठा, मोठां गीत गायीजता।
मुरधर-में मादकता रमी, बाळक बगै बैंडीजता॥73॥
होळी जाळी जुगत-सूं जळतो थाम उपाड़।
कोठै नाख्यो कोड-सूं ‘तेजो’ गाण उमाड़॥74॥
देखो, दिन आया अबै, सेढळ लीनी धोक।
ठंडो-मीठो जीमणो भूल सरद-रो सोक॥75॥
फूड़ लुगायां झूलवै मैल उतारण मन्न।
पाळो गयो पिताय कर लगी भिजोवण तन्न॥76॥
फागण फागड़दाह मरद मन बहरा बोलै
भांडा-रा सा भेस बणायां डफ पर डोलै
बातां बकै बणाय, अडीकत आयी होळी
काढो मन-री कसर बावड़ी मोड़ी बो’ळी
गळ्यां गैला गाळ गावै, धूड़ उडावै धरम-री।
कर गी किया कळाण! गूंगा? बात बड़ी है मरम-री॥77॥
सैणा सायर लोग प्रेम-री घूंडी खोलै
मीठी करै मजाक, मुळकता मीठा बोलै
बैर-भाव बिसराय रमै होळी रीती-सूं
गै’री उडै गुलाल, फाग खेलै नीती-सूं
देवर दोळा फिरै पाछै, भाभ्यां अबै अथीर।
भर पिचकारयां नीर नाखै, चूवै चोळ्यां-चीर है॥78॥
लाग्या आखा लोग, मचायी गै’र रंगीली
नभ-धरणी-रै नेह कळायण कढ़ी फबीली
फाग रमावण रची, मची रूड़ी आभै पर
छोटा ओळां छांट मिलायां बरसै मुरधर
जाणै रंग उमंग छांटा पिचकारयां मिस फाफड़्यां।
आभै धर-नै गै’र रमायी, ओळा ओळा-सा पड़्या॥79॥
आय घटा झट अूमटी करण ओळ बौछाड़।
छोटा-छोटा बरसवै मोत्यां-रै उणियार॥80॥
घर हालै, उर अूझळै, गड़गड़ गाज गजब्ब।
धरणी सा धोळी करी ओसर गड़ां अजब्ब॥81॥
होळी मिस धोळी करै धरणी आज अकास।
मणां मखाणां मुरधरा नाखै प्रेम प्रकास॥82॥
बाळक हरख हिलोळ-सूं चुगता चित भर चोळ।
हाथां लावत हांफता ठंडा कांकर ओळ॥83॥
आयी जितरी ओप-सूं चुगता चित भर चोळ।
हाथां लावत हांफता ठंडा कांकर ओळ॥84॥
रूत-राजा-रै चाव-में पांगरवै बणराय।
फबै सुहाणा फोगड़ा लांसूड़ा लै’राय॥85॥
फोगां फूल्यो फोगलो, होळी गयी सिधाय।
तड़कै ल्यावै तीजण्यां फूल जुहारा जाय॥86॥
फुलड़ा चूंटै प्रेम-सूं, गीत रसीला गाय।
मांगै धीयां गवर-सूं ‘अिसड़ा वर दे माय!’॥87॥
चंद्रायणा
हरिया फुलड़ा बीण सहेल्यां झूलरो।
चित उमड़्यो है चाव अणंद उर हूलरो।
अूंची मेड़ी आण खड़ी है तीजण्यां।
मीठा गावै गीत आपस मन-रीझण्यां॥1॥
करां घणी आह्वान, सुणीज्यो संकरी!
पूजां म्हे चित लाय थांरोड़ा किंकरी।
रोज चढ़ावां फूल प्रेम-सूं झूलती।
वर दे, कर दे खुसी, रवां नित फूलती॥2॥
तणो रसोई राव, लुगायां लूंझड़ो।
छन्नेड़ी-रो छैल, भायेलां बूचड़ो।
खूंसट पकड़ी खाट, खांसी तन माळियो।
अिसो कंत करमीण कुलछणो टाळियो॥3॥
जीमै जूती पैर, जणावै जोर सो।
सामगरी सामेट मचावै सोर सो।
मीठै भोजन साथ मिलावै चरपरो।
बे-सूरो भरतार दूर राखी परो॥4॥
काणो कोचर कंथ, अमलियां आगलो।
होकै-रो हम्मीर, ज्यूं काळो कागलो।
ठुकराअी-रो ठूंठ, ठगी-में सांतरो।
थोथी हांकणहार राखज्यो आंतरो॥5॥
‘पातळयो सिरदार’, फबै हद फूठरो।
घोड़ै-रो असवार, ओठीड़ी अूंठ-रो।
भायां रो बडवीर, सजै जा फौज-में।
पै’रावां वरमाळ, रवां म्हे मौज-में॥6॥
बांधै पचरंग पाग, छबीली चाल है।
जूती मूंघै मोल, मोत्यां-री माळ है।
बैरयां-में बिदरूप बणै ज्यूं काळ है।
अिसड़ो वर दे माय! गळै जय-माळ है॥7॥
धरा पर पराधीन जाणै ना रैवणो।
नेम धरम-रो बैण जगत-में कैवणो।
मात-भोम-रै हेत न मन माठो हुवै।
माअीतां-रै हीड़ै नहीं काठो हुवै॥8॥
लेण-देण बौपार सेठ बण खोलणा।
सांची राखै आण, झूठ नहिं बोलणा।
कुळां राखणो लाज, गुणां मन भावणो।
अिसड़ो वर दे माय! माणसां चावणो॥9॥
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मांगै सासर-पी’र, कुटम सौ कोड स्यूं।
माय बाप बलवंत, सुसर सिर-मोड़ ज्यूं।
नणदलड़ी नखराळ, सास जमना जिसी।
जय गवरी जगदंब! सदा पूजां अिसी॥88॥
काठी राखै काछ, ‘करण’ देवाळ करां-रो
उजळै उर, सुर-बोल, ‘घोळ पी रीस’ घरां-रो
बिरियां-रो बर वीर, जगत-नै प्यारो लागै
बिसरै स्वारथ बैर, सदा परमारथ भागै।
काण-कायदा माण! म्हां-नै के बूढो के बाळको॥89॥
देणो दोरो जाण मंगतां-नै मचकावै
सोख्यां-सूं कर राड़ झींकतो झोड़ बधावै
करै कडूंबां काट, बाळकां ल्यै बघझांअी
दीन नरां दै दुक्ख, करावै लोग हंसाअी
अकड़बाज, मूरख असल को अणहूंती भाखत फिरै।
अै’ड़ै साजन-सूं सहेल्यां अळगै अूभै-सूं डरै॥90॥
गावै सोणां गीत, पैरावै गै’णां प्यारा
मांड तीजण्या गवर चढावै फूल जुहारा
मांग घणा वरदान आरती पूजा करणी
बधकी सदा बणाय आंगणै आणंद भरणी
जुग-मन रंजण पग-पग करयो, जुग-में जबरो हरस है।
आछा जंचै उछव आंवता, दिन सो बीत्यो बरस है॥91॥
चाल्यो हींडा हींडणै तीजणियां-रो टोळ।
पकड़ तण्यां हींडण लगी लांबी लेण हिलोळ॥92॥
अूंची चढी अकास-घर, झुक-झुक झांकै झूर।
लूगां लूंबी देखती किती कळायण दूर॥93॥
गवर गुवाड़ां बीच-में बैठी दरसण दैण।
घोड़ा-अूंट दुड़ावता मोद मगरिये सैण॥94॥
गड़की घण बंदूक, पटाका सणणण छूट्या
ढाढी ले गळ ढोल बजावण सारु जूट्या
चूर ढोकळा नार गयी गिणगोर जिमावण
चरण चांप दे धोक चूरमो लगी चढ़ावण
अिकलंक अठै अिसो ही आयी अीसर! लेवण गोरज्या।
जाझा ,मोठ-मतीरा देयी, पूजां अिसड़ी गोरज्या॥95॥
घूमर घाल घुमेर-सूं गावै ‘गरजो’ गीत।
गोठ घुटावै गोरड़्यां घुड़लां रूड़ी रीत॥96॥
‘चैत चिड़पड़ो कियो’, हुयी जंगळ हरियाळी
फोगां घणी घिंटाळ लासुवां लूम-लूमाळी
लोरड़ियै-रा टोप चढ्या धर लीला-लीला
फबता काढै फूल चनण ज्यूं चमकै पीळा
अीली अिळा अिसै रंग राची, खगां-म्रिगां चित चोळ है।
बिन बरसा हरियाळी हुयी, हिवड़ै हरख हिलोळ है॥97॥
पीळा ओढ्वा पोमचा केळां गवर्यां-कोड।
भाखै नाखै फूलड़ा तीजणियां-री होड॥98॥
पीळी केसर कैलड़्यां मानो सोणी साख।
हळदी हरियां रूंखड़ां गयी कळायण नाख॥99॥
कांट किंटाळी खेजड़्यां सोवै सागरड़ी।
मिंहीं-मिंहीं केसर जिसी निम-झर निकळतड़ी॥100॥
ल्यावै टाबर तोड़ कर रीजां वादो-वाद।
साग सलूणा चालिया सांगरियां-रा स्वाद॥101॥
राजी जंगळ-में रमै ग्वाळा मन हरखाय
रीझ-रीझ रागां करै ठंडा झोला खाय
ठंडा झोला खाय पूनड़ी चालै प्यारी
भारी सोरम मिली कअी भांतां-री न्यारी
रंग-रंगीला फूल फोगलै फूली ताज़ी।
खाटी-मीठी बाळ करै मानव-मन राजी॥102॥
जबरा जंगळ-रा जती मति-भोळा मिठ-मुख्ख।
अै माणस उजळां मना भोगै भारी सुख्ख॥103॥
किसड़ी बातां कमी, घणेरा ऊछब आवै
आखा-तीज अपूछ टाबरां ब्यांव रचावै
घर ओपै आछा, जाण देवां मन-भाणा
‘बिरध विनायक’ जिसा बनोरां बनड़ा गाणा
मुरधर-में मंगळ हुयो है, मीठा चावळ सीजवै।
ढाढी ढोल-सारंगी सामै, सुहणां गीत सुणीजवै॥104॥
कठै वरातां चढै, कठै-सूं पाछी आवै
कित कूंगचड़ी बंचै कितै कागलियो गावै
चंवरी चरचै कितै विधी-सूं ब्यांव करावै
सैण-मनावो कितै, कितै समठूणी लावै
कठै बडारां जिमण-वारां कठैक वन्नोर्यां कढै।
दरज्यां-सोन्यां हुयो सोरखो, कमतर छाती पर चढै॥105॥
ब्यावां, सावां अूछबां सोरो बीत्यो साल।
जेठ लग्यो, रुत बावड़ी, धरण धूप-सूं लाल॥106॥
अूकळ तीखा तावड़ा ना चूकळिया जीव।
बिरख दरोगी फूलिया कर पथ्थर सो हीव॥107॥
पून पापणी धरण-रा धोर रही धसकाय।
पावस नीर घणो दियो, मुरधर ना मुरझाय॥108॥
धोरां धोळी धापड़ी बूअी रुअी रूप।
धापी धरा, उफाणियो घण-रो जस्स अनूप॥109॥
कैर कसूमै सा हुवा कीकर हरिया-ढीट।
राता रोहीड़ा रचै, माता फूल मजीठ॥110॥
खोखा चोखा ले खड़ा खेजड़ ‘लू’ में खेंट।
आय कळायण लेवसी म्हां-री सारी भेंट॥111॥
कैंरा अूपर केरिया बिन पानां-री पेस।
स्वागत करणै कोड-में सरस दिलासो देस॥112॥