चोपई
अउर न देखइ पदमिणि कोइ, जो देखइ सो गहिलु होइ।
पदमिणि पुण्यपखे क्युं मिलइ, जिणि दीठी नारी ग्रब गलइ॥
इम ते व्यास अनइ सुलितांण, वात करइं बे चतुर सुजांण।
तिणि अवसर पदमिणि चीतवइ, देखु असुर किसु इम चवइ॥
ततरइ जंपइ दासी एक, गउख हेठि बइठु सुविवेक।
ते देखण गोखइ गजगती, आवी बेठी पदमावती॥
जाली माहे जोबइ जिसइ, व्यासइं दीठी पदमिणि तिसइ।
ततखिण व्यास वली वीनवइ, सांमी पदमिणि देखुं हवइं॥
रतनजडी देखु जालिका, ते माहे दीसइ बालिका।
आलिम उंचुं जोइ जिसइ, परतिख दीठी पदमिणि तिसइ॥
अहो अहो ए कहुं पदमिणि, रंभ कहुं कइ कहुं रूखमिणी।
नागकुमरि कइ का किंनरो, इंद्राणी आणी अपहरो॥
एहनु रूप अनोपम एह, रूप तणी इणि लाधी रेह।
एहना एक अगूंठा जिसी, अवर नारि नहु दीसइ इसी॥
एहनी बात कहीजइ किसी, पदमिणि नारि हीया महि वसी।
मूर्छित चित्त हूउ पतिसाह, घरणि ढलइ वलि मेल्हइ धाह॥
व्यास कहइ संभलि नरराज, फोकट कांइ गमाडु लाज।
धीर धरु साहस आदरु, अवर उपाय वली को करु॥
रतनसेन जु पांनइ पडइ, तुं ए पदमिणि हाथइं चडइ।
इम आलोची मेल्ही वात, धीरपणा विण न मिलइ घात॥
मौन करी सहु जीमिउ साथ, भगति घणी कीधी नरनाथ।
फल फोफल देई तंबोल, माहोमोहि कीउ रंगरोल॥
चोआ चंदन अगर कपूर, करि कसतूरी केसर पूर।
माहोमाहि कीया छांटणा, ऊपरि दीधा वागा घणा॥
परिघल दीधी पहिरामणी, भगति जुगति अति कीधी घणी।
हाथी घोड़ा देई घणा, संतोष्या सगला प्राहुणां॥