आवै कूंकूं पगल्या मेल,
अठै तौ कांटां रो संसार!
संभै ना थांसूं हळको चीर,
जिकण में रिमझोळां रो भार!
अर्थ :
(संध्या सुन्दरी) अपने कुंकुम वर्ण वाले (लाल सुकुमार) चरण रखती हुई आती है। (उसे क्या पता कि) यह संसार तो कांटों से परिपूर्ण है। (हे! सुकुमार संध्या!) तुझ से तो (पवन के साथ भागते हुए मेघों का) अपना हलका चीर भी नहीं सम्हलता है, तू (अपने पैरों में पड़ी) रिमझोलों का भार कैसे सहेगी?