तास खलता घर-घर दीसै, बैठ्या ऊपर जाजमड़ी।

हार जीत नै भूल्या विसरा, सुगन मनावै साथड़ली॥

रातड़ली मै छुटै अनारां, फूल झड़ै है टीबड़ली।

च्यारू मेरां दिखे बिखरता, हीरा मोती रेतड़ली॥

तूळी लाग्यां तीर छूटजा, दिखे गिगन मै आगड़ली।

भूल्यौ भटक्यौ घर पर पड़जा, जगती दीसे झूंपड़ली॥

आंटा खातौ सांप बणै है, फंण फैल्यो है धाकड़ली।

हंसता- हंसता टावर देखै, ऊभा साथै मावड़ली॥

अेक बरस सूं आइ दियाळी, घर-घर छायी हरखड़ली।

पुरख लुगाई पूजा करता, मांगे सोनी चांदडली॥

स्रोत
  • पोथी : मूंडै बोले रेतड़ली ,
  • सिरजक : सरदारअली परिहार ,
  • प्रकाशक : परिहार प्रकाशन ,
  • संस्करण : प्रथम