डांग ठहूको कड़ि हथो, नैणां ऊपर हथ्थ।
वील्ह बुढापो आवियौ, गयो ज धींगड़ सथ्थ॥
जूनुं वैर पुराणां रिण, मरत वियावर गाभ।
आगि बळतै खोल्हड़ै, जो नीकळै सो लाभ॥
वसुधा सब कागज करुं, सारदा लेख बणाय।
उदध घोरि मिस कीजिये, हरि गुण लिख्यो न जाय॥
ग्यान दगधी गुर निंदणा, पात्रियळ आन उपास।
ऐता सबद न दीजिये, दाखै विठळदास॥
अड़वो चुगै न चुगण द्यै, माणस की उणियार।
वील्ह कहै रे भाइया, सूम बड़ो संसार॥
गुर निरमल निकलंक गुर पर उपगार करंत।
वील्ह कहै गुर दाखव्यौ, मुकति खेत को पंथ॥
वील्होजी कहते हैं- जब मनुष्य लाठी का सहारा लेता है, कमर पर हाथ रखता है और आंखो पर हाथ करता है, तो यह बुढ़ापा आने का संकेत है। अब वे धींगा-मस्ती के दिन नहीं रहे हैं।1
पुरानी दुश्मनी, पुराना कर्ज, गर्भ में मरा हुआ बच्चा और जलता हुआ झौंपड़ा आदि से बाहर निकलना अथवा छोड़ना ही अच्छा है।3
यदि पृथ्वी को कागज मानूं, सरस्वती को लेखनी बनाऊं और समुद्र को घोलकर स्याही करूं, तो भी ईश्वर के गुण लिखे नहीं जा सकते।5
जिनको वाचक ज्ञान है लेकिन आत्म-ज्ञान नहीं है, वे गुरु की निंदा करते हैं। जो लोग अन्य अपात्र देवों की उपासना करते हैं, कवि वील्होजी कहते हैं- ऐसे लोगों को आप गुरु ज्ञान न देवें।9
पशुओं से फसलों की रक्षा के लिये किसान मनुष्य का नकली रूप बनाते हैं- उसे अड़वा कहते हैं। वह न खुद चरता है और उसके डर से पशु भाग जाते हैं। कवि वील्होजी कहते हैं- इस संसार के लोग भी इस अड़वे की तरह हैं जो स्वयं न भगवान का नाम लेते हैं और न अन्य किसी को लेने देते हैं।10
गुरु निर्मल स्वाभाव के हैं। उन पर किसी प्रकार का कलंक ही लगा हुआ है। वे हमेशा दूसरों का भला करते है। वील्होजी कहते है कि गुरु जाम्भोजी ने मुक्ति प्राप्त करने का रास्ता बताया है।11