दूहा
अबहि चराचर व्रंम इक, कहत चिमन कवियांन।
उनहि विचारत ऊपजै, भक्ति श्रेय भगवांन॥
अबंर धर ससिवर अरक, पवन र पांणी पेख।
ब्रहम गिनांनी संत वड, लेखत एक अलेख॥
छंद त्रोटक
लगनीबत संत अनंत लखै।
दुनियांन चराचर व्रंद दखै।
धर अबंर व्यापक एक धणी।
तिहँ मांय कला सब रांम तणी॥
सस सूर उडग्गण व्रच्छ सबै।
अतुली बल भ्यासत एक अबै।
तर देवत डूंगर रूप तेता।
जल वाय उतौ परमांण जेता॥
रिख जिक्ख सन्यासिय देह नरं।
करतार अपार पैदास करं।
पसु पंख असंख निसंक पुणै।
गुनवांन सबै व्रम हेक गिणै॥
जलचर थलाचर जीव जिंद।
पद एक उभै र अनेक पदं।
अहि प्रेत अचेत सुचेत अभा।
पह लोक अलोक सुलोक प्रभा॥
गुणवांन सुग्यांन अग्यांन गती।
मह ध्यानं उद्यांन निध्यांन मती।
मछ कच्छ वाराह नाराह मुदै।
स्वांह मांय व्रछादक छांह उदै॥
दिगपाल भुवाल एकौ दरसै।
वरसाल तेजाल मही वरसै।
तरपात जिता तुम रूप तही।
सरजात अग्यात में नाथ सही॥
धर ऊपर इंदर नीर ध्रवै।
हरियाल इला भर पांन हुवै।
धर धूल कणूंकाय रूप धरै।
परतीत अनंत अनंत परै॥
महि माज समाज जितौ मन को।
अनथाह सराह क्रिया उनको।
धर तीरथ धांम अनेक धरा।
खट च्यार अठार छतीस खरा॥
नव आठ रु सात इता त्रमल।
वर नार अपार सही विमल।
हम खोज लहैं सब सोज हरी।
प्रभु तेज कला सब में पसरी॥
सह दीसत रूप अनूप सदा।
जगदीस सता अत आप जुदा।
किरतार औतार किता कहियै।
लख वार सिलांम नमै लहियै॥
जिनही जिन देह धरी जग में।
मर जीव लगै भगनी मग में।
जिन दास ‘चिमन्न’ लखै जब में।
सब अंस चराचर है सब में॥
उनको ‘चिमनेस’ आदेस इता।
जगजीत सु संत अनंत जिता।
इनको नित सेवत है जु अजै।
भय रोर संताप को ताप भजै॥
दूहा
चराचरी चिमनेस कहि, यहि खोजत अवतार।
भजै भरम उपजै भगति, पौहचै भव जल पार॥