मनवारां सूं अमल ऊगजा, किरची धरियां जीभड़ली।

क'रै खंखारा हूं कारां सूं, धोरा धूजै धरतड़ली॥

हौळी-दियाळी ब्यांव अेढै, प्याला भरदै बोतलड़ी।

देसी ठर्रौ सगळा पीवै ,ठाकर दारू दाखड़ली॥

सगा - परसंगी भाई बन्धू जद मिळ बैठै जाजमड़ी।

दारू रै मनवारां प्याला, पूगै होटां जीभड़ली॥

जणै डुमण्यां मधरो गावै, दारू प्याला हाथड़ली।

होडा-होडी रिपिया बरसै, खाली होजा जेबड़ली॥

भरी जवानी दारू पीवै, राता डोरा आंखड़ली।

मदमस्ती में दिखे चालती, गबरू ऊंची टीबड़ली॥

स्रोत
  • पोथी : मूंडै बोले रेतड़ली ,
  • सिरजक : सरदारअली परिहार ,
  • प्रकाशक : परिहार प्रकाशन ,
  • संस्करण : प्रथम