मौरत निकळ्यां ब्यांव हुवै है, घर-घर गावां गीतड़ली।

इणती-गिणती आवै कोनो, दिन्न गिणावै गैडड़ली॥

ब्यांव तिथी नै मुकर करयां सूं, दिखै बांधता गांठड़ली।

हळदी गांठियौ मोळी बांध्यौ, माळा टांगी भींतड़ली॥

विधन विनायक आय विराजै, ब्यांव रचावै साथड़ली।

बिन गणेसजी कांम सरै नीं, गीत लडावे मावड़ली॥

ब्यांव टांकलै गीत गायवा, घर सूं आवै बहवड़ली।

मधरा-मधरा गीत गावती, घर-घर दीसे गोरड़ली॥

हरिया मूंग बिखेरण रीतां, ब्यांव मंड्यां सूं गांवड़ली।

मोठ मूंग नै चुगती-चुगती, गीत उगेरै बहवड़ली॥

स्रोत
  • पोथी : मूंडै बोले रेतड़ली ,
  • सिरजक : सरदारअली परिहार ,
  • प्रकाशक : परिहार प्रकाशन ,
  • संस्करण : प्रथम