सिंणकलिया टाबरिया दीसै, हाथां लीयां पाटड़ली।
गांवां री पोसाळा भिणलै, क-कौ कोटकौ बारखड़ी॥
पोसाळा मै उधम मचायां, गुरू खींचलै चोटड़ली।
सिचला-सिचला टाबर बैठै, पड़ती दोस्यां ठूळकड़ी॥
पढणौ बोळौ लिखणौ थोड़ौ, कंठां जूनी पोथड़ली।
उणणौ-गुणणौ हिवड़ै उपजै, डेढा ढावा घूंटड़ली॥
गुरु देव री मुहारणी मै, ऊंचा-पूंचा ढूंचड़ली।
पढणी - लिखण कोठै करियौ, हियै उतारी बातड़ली॥
बिना पढोड़ा दिखै गांव मै, अकल बसी है हीवड़ली।
हाथ आंगळ्यां गिणतां-गिणतां, करलै लेखा जोखड़ली॥