दूहौ

हाथ पताका हिन्द री, उर में देस उमंग।
कटिया जो कशमीर में (उण) रणसूरों ने रंग॥

छन्द

बितीह बिसर कर, पाँव पसर कर, तस कर, बन कर आय चड़े।
सूता नाहर पर आय उफणकर, पनंग फुण कर पाँव पड़े।
कायर फायर कर हिन्द पर आकर, करण जंग ललकार करे।
ऊँचे गिर शिखर, कारगिल ऊपर धर कशमीर संग्राम धरे॥

भिड़के जब टैंक घोर कर गरजण, शंकर आसण सर सरके।
थिरके सिर सैंस सप़त़पुळ थररर, जेटजबर गोला जरके।
भड़के भयभीत समरमच भगदड, कट बहादुर घमसान करे।
ऊंचे गिर शिखर कारगिल ऊपर धर कशमीर संग्राम धरे॥

हरहर महादेव नाद कर हूंकर सुणकर गोला सरणाटा।
बख्तरबंद टैंक एल. एम. जी. बरबर, थ्रीइंच मोटर थरणाटा।
हैवीगन मिडिल मशीनगन हमम्मम धम्मम् बम्ब ग्रिनेड धरे।
ऊंचे गिर शिखर कारगिल ऊपर धर कशमीर संग्राम धरे॥

घिरीया ब्रिगेड डिविजन धिरीया, करि या केप्चर अरियण को।
हिलमिल होय हेक, मिग हेलीकॉप्टर झपट उडे जीतण रंग को।
बम्बा बरसाण व्योमरथ बररर घरर तोफ धमाड घुरै।
ऊंचे गिर शिखर कारगिल ऊपर झर कशमीर संग्राम धरे॥

दाब्या दल सबल दिसोदिस दळदळ खळळ खून नदियो खळकी।
गळगळ रणबीच धुरन्धर गळियां, भोडकियों हिम पर भळकी।
कटग्या केई वीर देसहित कारज कवि 'मोहन' तिण नमन करै।
ऊंचे गिर शिखर कारगिल ऊपर धर कशमीर संग्राम धरे॥

  
स्रोत
  • सिरजक : मोहन सिंह रतनू ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी