बाजरियै सीटां नै राखण, खेतां दीसे करड्डली।

कीड़ा-कीड़ी ऊन्दर फिरलै, नीचै बाळू धरतड़ली॥

हाथ छाजलौ लीयां ऊभी, धान उफाणै बहवड़ली।

धान फळगटी न्यारी-न्यारी, ढेरयां लागी खेतड़ली॥

धीमी पून धान नीं उफणै, बैठ्यौ भाई रोहिड़ली।

काळा पड़ता दिखै दांणिया, बादळ नांख्यां छांटड़ली॥

खेत खळा पर झाड़ दीनौ, धान बचै नीं घासड़ली।

गाड्यां लादयां घर मै लावे, भर-भर टोकी छाटड़ली॥

धान नैणकी टोकी लागी, ऊभौ कूटै डांगड़ली।

गुणौ मोठिया न्यारा-न्यारा, भरतौ दीसे बोरड़ली॥

धान राखबा ठांव बणावै, पायां ऊंची कोठड़ली।

ऊन्दर नीचै रमतां घालै बिल दीसै नीं छेतड़ली॥

स्रोत
  • पोथी : मूंडै बोले रेतड़ली ,
  • सिरजक : सरदारअली परिहार ,
  • प्रकाशक : परिहार प्रकाशन ,
  • संस्करण : प्रथम