मरू देस मै गबरू ऊभौ, चोड़ी ऊंची छातड़ली।
रूं भरोड़ौ सीनौ दीसै, भारी मूंछां बांकड़ली॥
इसड़ी मूंछां कठै न देखो, जिसड़ी जेसा गांवड़ली।
गोळ चकरिया गालां माथै, दिखे चेपती हाथड़ली॥
पट्टा लकड़ी खेल रचावै, छुरी कटारी धारड़ली।
अलटा-पलटा खातौ दीसै, रमतां घालै धाकड़ली॥
कबडी रमता दिखै भाइड़ा, चांदडलै री रातड़ली।
अेक दुजै री टांग पकड़तौ, पटक दिखावै रेतड़ली॥
गांव-गांव सूं गबरू आवै, कुसती होडा होडड़ली।
जीतोड़ा मै उछव मोकळौ, धमचक मचजा गांवड़ली॥