चोपई

हलकार्‌या आलिम असवार, माहोमाहि मिल्या जूझार।

रतनसेन झालिउ ततकाल, विलली वात हूई विसराल॥

साथि हता जे सुभट सनेह, तीयां तणु तिणि कीधु छेह।

नरपति आणिउ लसकर माहि, जाणि कि सूरिज गिलीउ राहि॥

बेड़ी घालि बेसारिउ राउ, आलिम जुलम कीउ अन्याउ।

भूप हतु अति सबल सही, अबल हूउ जब लीधु ग्रही॥

सुणी सहू गढ माहे वकी, वात तणी विणठी वांनकी।

गढ माहे हूई हलकल घणी, साहे लीधु जब गढ़धणी॥

मिलीया सुभट दहोदिसि वली, सेना सगली गढ महि मिली।

मिलीया मांणस टोलाटोलि, सबल जड़ावी गढनी पोलि॥

वीरभांण सुत सुभटां माहि, बइठु आवि ग्रही गजगाह।

माहोमाहि करइ आलोच, सबल हूउ गढ माहि संकोच॥

एक कहइं जूझां गढ माहि, एक कहइ द्‌यां राती वाह।

एक कहइं सांमी सांकड़इ, जूझतां किम टांणु जुडइ॥

एक कहई नहीं नायक माहि, विण नायक हतसेन कहाइ।

नायक विण सहु आल-पंपाल, पूलइ बांधु जिसु पलाल॥

एक कहई मरवुं छइ सही, मूआं गरज सरइ का नही।

सबलांसुं नवि थाइ संग्राम, जिण परि तिण परि रहइ मांम॥

इम आलोच करइं भट सहू, मन माहे भय हूओ बहू।

ततरइ आविउ इक परधांन, आलिमसाहि तणु असमांन॥

स्रोत
  • पोथी : गोरा बादल पदमिणी चउपई ,
  • सिरजक : हेमरतन सूरि ,
  • संपादक : मुनि जिनविजय ,
  • प्रकाशक : राजस्थान राज्य प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर (राज.) ,
  • संस्करण : तृतीय
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