पोसु सु पत्तउ मतिहि सियारु,
घिउ घेउर लापसिय कंसारु।
लाडु लावण भोयणु होइ,
पोसउ पिंडु सयलु जग लोए।
जादरि गजवडि ओढण ए,
रयणि-दिवसि नतु पडइ तुसारो।
सु कुमरि सदुखिय इव भणए,
मइ मेल्हिवि गउ नेमिकुमारो॥

माहु महाभडु हिम सिय-वासु,
वण वणसइ पुडइणि सिय-दाधु।
सिउ सिउ सिउ जणु अचरए,
जा हरि सवडि तहउ अणुसरए।
एक रयणि वरिसाअलिय,
कुमरि भणइ, किम करि पयणाउ।
नेमि-विहुणा परि दिन,
हा विधि, दइय न लेखे लाए॥

आउ आगम फागुण तणउ,
अति सिउ पवणु फरुकइ घणउ।
गिरि तरवर फळ पात झळाहि,
डाळहि डाळ सिखा धरि जाहि।
दिणि दिणि अंगु झकोळिजए,
तिम्व तिम्व सालहि बहु दुख भार।
कुमरि भणइ, किम नीगमओ,
तइ विणु, सामिय नेमिकुमार॥

चीतु ससिरु संपत्तु बसंतु,
मालइ-मालय कमल विहसंतु।
महुय गलहि मउरिया सहार
कोइल महुर करहि झंकार।
तरुणि नयणि काजळु ठवहिं,
निवसहि चीरु रुळावहि हारो।
तो न चलइ मनु मुझ-तणओ,
हुयवहु सरणु कि नेमिकुमारो॥

वयसाहहँ विहसइ वणराए,
बेउलु कुंदु निवालिय जाए।
चंपउ पाडल कुलुव कल्हारो,
दवणउ मरुअउ देवगंधारो।
जणु परिमळ मोहिउ भमए,
महु चींतत निसि नीढि विहाए।
नेमिकुमरु तव चरणु गओ,
सखि वैसाखु दुहेलउ जाए॥
स्रोत
  • पोथी : प्राचीन राजस्थानी काव्य ,
  • सिरजक : पाल्हण ,
  • संपादक : मनोहर शर्मा ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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